गीत नहीं गाता हूँ

पढ़ें अटल बिहारी वाजपेयी जी की प्रेरणादायक कविता ‘गीत नहीं गाता हूँ’ – संघर्ष और आत्मबल की अद्भुत अभिव्यक्ति।
बेनक़ाब चेहरे हैं
दाग़ बड़े गहरे हैं
टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
लगी कुछ ऐसी नज़र
बिखरा शीशे-सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
पीठ मे छुरी-सा चाँद
राहु गया रेखा फाँद
मुक्ति के क्षणों में बार-बार बँध जाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
यह कविता हमें सिखाती है कि जीवन में चुनौतियाँ तो आएँगी, निराशा का अंधकार भी छाएगा, परंतु हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। हमें हर घाव, हर संघर्ष को एक नई ऊर्जा में बदलते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
अटल बिहारी वाजपेयी जी की यह कविता न केवल एक प्रेरणा स्रोत है, बल्कि जीवन के प्रति उनके अदम्य साहस और दृढ़ निश्चय का प्रमाण भी है। यह हमें सिखाती है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन हों, कभी हार न मानें – यही सच्ची वीरता है।
क्या आपको अटल जी की और भी कविताएं पसंद हैं, या फिर किसी और कवि की रचना सुनना चाहेंगे? 😊
प्रातिक्रिया दे