केले का मज़ा

केले का मज़ा

केले का मज़ा’ एक मनोरंजक और शिक्षाप्रद हिंदी कविता है जो सार्वजनिक स्थानों पर सफाई और जिम्मेदारी के महत्व को बताती है।

खुली सड़क पर ज़रा ठहरकर,
लाला जी ने केला खाया।
केला खाकर मुँह पिचकाकर,
उसका छिलका वही गिराया।
छड़ी उठाकर तोंद बढ़ाकर,
लाला जी ने कदम बढ़ाया,
पाँव के नीचे छिलका आया,
लाला जी फिर ऐसे फिसले,
खुली सड़क पर गिरे धड़ाम ।
हड्डी-पसली दोनों टूटीं,
मुँह से निकला ‘हाय-राम’।
छिलका लाला जी से बोला,
केले का तो यही मज़ा है।
बीच सड़क पर छिलका जो फेंके,
उसको मिलती यही सज़ा है।

 

नैतिक शिक्षा:

हमें अपने आसपास की सफाई का ध्यान रखना चाहिए और सार्वजनिक स्थलों पर कचरा नहीं फेंकना चाहिए। छोटी सी लापरवाही से न केवल हमें, बल्कि दूसरों को भी परेशानी हो सकती है। साफ-सफाई हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है।

केले का मज़ा: शैक्षिक कविता

केले का मज़ा’ एक मनोरंजक और शिक्षाप्रद हिंदी कविता है जो सार्वजनिक स्थानों पर सफाई और जिम्मेदारी के महत्व को बताती है। इस कविता में लाला जी की कहानी है, जो खुली सड़क पर केला खाते हैं लेकिन लापरवाही से छिलका फेंक देते हैं, जिससे अनपेक्षित और हास्यास्पद परिणाम होता है। यह कविता बच्चों को कचरा फेंकने के परिणामों के बारे में सिखाती है। जब लाला जी उसी केले के छिलके पर फिसलते हैं, जिसे उन्होंने फेंका था, तो यह यादगार सबक बन जाता है कि क्यों कचरे को सही तरीके से निपटाना ज़रूरी है। यह कविता छोटे पाठकों और श्रोताओं के लिए उत्तम है, जो मनोरंजन के साथ-साथ मूल्यवान नैतिक शिक्षा भी प्रदान करती है। यह माता-पिता और शिक्षकों के लिए बच्चों में अच्छी आदतों और पर्यावरणीय जागरूकता विकसित करने के लिए एक उत्कृष्ट संसाधन है।

 

Image by brgfx on Freepik

#Hindi Educational Rhymes

One reply on “केले का मज़ा”

  • Sheela gupta says:

    वाह मायरा, आपने पूर्व प्रचलित कविता को कुछ नए शब्द देकर, नए अंदाज में बहुत अच्छे से प्रस्तुत किया….

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