गुरु रामदास जी: सेवा, भक्ति और अमृतसर के निर्माता

गुरु रामदास जी ने सिख धर्म को सेवा, भक्ति और आध्यात्मिकता के नए आयाम दिए। जानिए उनके जीवन, योगदान और अमृतसर की स्थापना की कहानी।
गुरु रामदास जी सिख धर्म के चौथे गुरु थे, जिनका जन्म 24 सितंबर, 1534 को लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान) में एक समर्पित सिख परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनके भीतर आध्यात्मिकता के प्रति गहरी रुचि और ईश्वर के साथ गहरा संबंध देखने को मिला।
उनकी आंतरिक आध्यात्मिक जागृति ने उन्हें सिख धर्म के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी की शरण में पहुँचाया। गुरु अमरदास जी ने उनकी भक्ति, सेवा और गुणों को पहचानकर 1574 में उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और सिख धर्म का चौथा गुरु नियुक्त किया।


गुरु रामदास जी का योगदान
अमृतसर शहर की स्थापना
गुरु रामदास जी ने एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कार्य किया — अमृतसर शहर की स्थापना। उन्होंने हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) के निकट एक पवित्र सरोवर खुदवाया, जिसे बाद में अमृत सरोवर कहा गया। यह स्थान आज भी सिख श्रद्धालुओं और अन्य भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
हरमंदिर साहिब का निर्माण
गुरु रामदास जी के नेतृत्व में हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) के निर्माण की नींव रखी गई। यह भव्य मंदिर आध्यात्मिकता, समानता और सेवा का प्रतीक है। हर धर्म, जाति और वर्ग के लोग यहाँ एक समान भाव से स्वागत पाए जाते हैं।
निःस्वार्थ सेवा (सेवा) का प्रसार
गुरु रामदास जी ने सेवा को आध्यात्मिक साधना का एक मुख्य साधन बताया। उन्होंने सिखों को दया, करुणा और मानवता के प्रति निःस्वार्थ सेवा करने के लिए प्रेरित किया। आज भी सिख धर्म में लंगर की परंपरा — बिना भेदभाव के सभी को मुफ्त भोजन कराना — उनकी इसी शिक्षा का जीवंत उदाहरण है।
आध्यात्मिक भजन और शबद
गुरु रामदास जी ने कई सुंदर भजन और शबद रचे, जो गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं। ये रचनाएँ आज भी भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।
पारिवारिक जीवन और संतुलन
गुरु रामदास जी का जीवन एक आदर्श उदाहरण है कि कैसे आध्यात्मिक भक्ति और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने गुरु अमरदास जी की बेटी बीबी भानी जी से विवाह किया था और उनके तीन पुत्र हुए — पृथ्वी चंद, महादेव और गुरु अर्जन देव जी। बाद में गुरु अर्जन देव जी सिख धर्म के पाँचवें गुरु बने।
भक्ति और सिमरन का महत्व
गुरु रामदास जी ने भक्ति और सिमरन (ईश्वर के नाम का स्मरण) को जीवन का अभिन्न हिस्सा माना। उनके अनुसार:
“जो व्यक्ति स्वयं को सच्चे गुरु का सिख कहता है, उसे सुबह जल्दी उठकर भगवान के नाम का ध्यान करना चाहिए। प्रतिदिन अमृत कुंड में स्नान करना चाहिए और गुरु के बताए अनुसार ‘हर-हर’ का जाप करना चाहिए। इससे सभी पाप, दुष्कर्म और नकारात्मकता मिट जाएगी।”
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यह संदेश आज भी सिख धर्म के अनुयायियों के दैनिक जीवन का मार्गदर्शन करता है।
विरासत और प्रेरणा
गुरु रामदास जी ने लगभग सात वर्षों तक सिख धर्म का मार्गदर्शन किया। 1 सितंबर 1581 को अमृतसर में उनका पार्थिव शरीर शांत हुआ, लेकिन उनकी शिक्षाएँ, उनका समर्पण, और उनका द्वारा स्थापित अमृतसर आज भी उनकी जीवित विरासत हैं।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि सेवा, भक्ति, समानता और भाईचारे के साथ जीवन जीना ही सच्चे अध्यात्म की राह है।
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