गुरु नानक देव जी: सिख धर्म के प्रथम गुरु और महान संत

गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक थे। उनका जीवन मानवता, सेवा और सत्य की मिसाल है। जानिए उनकी शिक्षाओं और यात्राओं की कहानी।

गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु थे। उनका जीवन और शिक्षाएं न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि मानवता, समानता और सेवा जैसे मूल्यों को भी दर्शाती हैं। 15वीं शताब्दी के भारत में जब समाज जात-पात, अंधविश्वास और भेदभाव से ग्रसित था, उस समय गुरु नानक देव जी ने एक नई सोच और विचारधारा का जन्म दिया। उन्होंने यह बताया कि सभी मनुष्य एक समान हैं और ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग सेवा, सच्चाई और प्रेम है।

गुरु नानक देव जी का प्रारंभिक जीवन

  • जन्म: 15 अप्रैल, 1469 को राय भोई दी तलवंडी (वर्तमान में ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ।
  • पिता: मेहता कालू (एक पटवारी थे)
  • माता: माता त्रिपता
  • शिक्षा: बचपन से ही धार्मिक ग्रंथों और भाषाओं में गहरी रुचि थी। उन्होंने फारसी, संस्कृत, अरबी और पंजाबी भाषाओं का अध्ययन किया।
  • विवाह: सुलक्खनी देवी से विवाह हुआ और दो पुत्र – श्रीचंद और लख्मीचंद हुए।

गुरु नानक बचपन से ही संवेदनशील, विचारशील और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। उनके प्रश्न और विचार अक्सर समाज के स्थापित नियमों को चुनौती देते थे। उन्हें शुरू से ही सांसारिक मोह-माया से दूरी और ईश्वर के प्रति गहन लगाव था।


आध्यात्मिक जागरण और ‘एक ओंकार’ का संदेश

30 वर्ष की आयु में एक बार वैन नदी में स्नान करते समय वे तीन दिन तक अदृश्य हो गए। जब वे लौटे, तो उन्होंने कहा:

“ना कोई हिंदू, ना मुसलमान।”
और तब से उन्होंने अपने जीवन को मानव सेवा, सच्चाई और प्रेम के प्रचार में समर्पित कर दिया।

उन्होंने जो पहला शब्द उच्चारित किया वह था –
“एक ओंकार सतिनाम”
जिसका अर्थ है – ईश्वर एक है, और उसका नाम ही सत्य है।

उदासियाँ: चार विशाल यात्राएँ

गुरु नानक देव जी ने जीवन भर धर्म और मानवता के प्रचार के लिए दूर-दूर तक यात्राएँ कीं जिन्हें ‘उदासियाँ’ कहा जाता है। इन यात्राओं में उनके साथ एक मुस्लिम रबाब वादक भाई मर्दाना भी होते थे। ये यात्राएँ अफगानिस्तान, अरब, तिब्बत, श्रीलंका और पूरे भारत में की गईं।

यात्राओं का उद्देश्य था:

  • एक ईश्वर की भक्ति का प्रचार
  • जातिवाद, मूर्तिपूजा और आडंबरों का विरोध
  • सेवा और भाईचारे का संदेश देना

गुरु नानक देव जी की शिक्षाए

1. एक ईश्वर में आस्था

गुरु नानक जी ने बताया कि ईश्वर एक है – वह सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और दयालु है। उसे किसी भी धर्म के नाम से पुकारा जा सकता है।

2. नाम जपना

हर दिन ईश्वर का नाम लेना (स्मरण करना), यही आत्मा को शुद्ध करता है। उनका प्रसिद्ध मंत्र:
“इक ओंकार, सतिनाम, करता पुरख, निर्भउ, निरवैर…”

3. कीरत करो (ईमानदारी से कमाओ)

ईमानदारी और मेहनत से कमाना और दूसरों का हक न मारना।

4. वंड छको (बाँट कर खाओ)

समाज में समता लाने के लिए अपना कमाया हुआ भोजन और धन जरूरतमंदों से बाँटना।

5. सेवा और विनम्रता

स्वार्थ त्यागकर निस्वार्थ सेवा करना, यह मानवता की सबसे ऊँची साधना है।

6. सभी मनुष्यों की समानता

गुरु नानक ने उस समय की कुरीतियों को चुनौती दी और कहा कि जाति, धर्म, या लिंग के आधार पर कोई भी ऊँचा-नीचा नहीं होता।

लंगर की परंपरा: सामाजिक समानता का प्रतीक

गुरु नानक देव जी ने गुरुद्वारों में लंगर की परंपरा शुरू की – एक ऐसी जगह जहाँ सभी लोग, चाहे कोई भी जाति, धर्म या वर्ग से हों, एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह केवल भूख मिटाने का नहीं, बल्कि सामाजिक समानता का भी प्रतीक था।

गुरु नानक देव जी से जुड़े प्रमुख गुरुद्वारे

गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक: जहाँ उन्होंने जीवन के अंतिम वर्ष बिताए और परम ज्योति में विलीन हुए।

गुरुद्वारा कन्ध साहिब (बटाला): जहाँ उनका विवाह हुआ था।

गुरुद्वारा हाट साहिब (सुल्तानपुर लोधी): जहाँ उन्होंने शाही भंडार में नौकरी की और ‘तेरा-तेरा’ का भाव जागृत हुआ।

गुरुद्वारा गुरु का बाग: उनका निवास स्थान, जहाँ उनके दोनों पुत्रों का जन्म हुआ।

गुरुद्वारा कोठी साहिब: जहाँ उन्हें गलत आरोप में जेल भेजा गया और फिर नवाब ने क्षमा माँगी।

गुरुद्वारा बेर साहिब: जहाँ वैन नदी में डुबकी लगाकर तीन दिन बाद ‘एक ओंकार’ का संदेश लेकर लौटे।

गुरुद्वारा अचल साहिब: योगियों से धार्मिक संवाद किया।

बच्चों और युवाओं के लिए प्रेरणा

गुरु नानक देव जी का जीवन आज के बच्चों और युवाओं के लिए मार्गदर्शक है:

  • ईमानदारी से पढ़ाई और मेहनत करो।
  • झूठ, चोरी और लालच से बचो।
  • दूसरों की मदद करना एक पुण्य कार्य है।
  • सभी से समानता और प्रेम से व्यवहार करना चाहिए।
  • हर दिन कुछ अच्छा और नेक काम करने की कोशिश करो।

एक प्रकाश स्तंभ

गुरु नानक देव जी का जीवन और शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी 500 साल पहले थीं। उन्होंने धर्म की नई परिभाषा दी – एक ऐसा मार्ग जिसमें ईश्वर से प्रेम, मानवता की सेवा और सच्चाई की साधना प्रमुख हो। उन्होंने समाज को नफरत से निकालकर प्रेम की राह दिखाई।

आज, उनके विचार और लंगर की परंपरा दुनिया भर में लाखों लोगों को जोड़ती है। वे केवल एक धर्म के गुरु नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रकाश स्तंभ हैं।


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