गुरु अमर दास जी: सिख धर्म के तीसरे गुरु का प्रेरणादायक जीवन

गुरु अमर दास जी, सिख धर्म के तीसरे गुरु, ने लंगर सेवा, जाति प्रथा विरोध और महिला सशक्तिकरण जैसे ऐतिहासिक कार्यों द्वारा समाज में नया संदेश दिया।
गुरु अमर दास साहिब जी (गुरुमुखी: ਗੁਰੂ ਅਮਰ ਦਾਸ) सिख धर्म के तीसरे गुरु थे। उनका जन्म रविवार, 23 मई 1479 को श्री तेजभान जी और माता लछमी जी के घर हुआ था। गुरु अमर दास जी का जीवन प्रेरणा, सेवा और समानता के अद्वितीय आदर्शों का प्रतीक है।
प्रारंभिक जीवन
गुरु अमर दास जी का जन्म गुरु नानक देव जी के जन्म के दस वर्ष बाद हुआ था। वह अमृतसर के पास बसे बसर्के गाँव में रहते थे और एक साधारण दुकानदार तथा किसान थे। उनका विवाह माता मनसा देवी जी से हुआ, जिनसे उनके चार बच्चे हुए — दो पुत्र, भाई मोहन और भाई मोहरी, तथा दो पुत्रियाँ, बीबी दानी जी और बीबी भानी जी। बाद में बीबी भानी जी का विवाह भाई जेठा जी से हुआ, जो आगे चलकर गुरु राम दास जी, सिख धर्म के चौथे गुरु बने।


गुरु बनने की यात्रा
गुरु अंगद देव जी के स्वर्गवास (29 मार्च 1552) के पश्चात, 16 अप्रैल 1552 को गुरु अमर दास जी ने 73 वर्ष की आयु में गुरु गद्दी संभाली। गुरु अमर दास जी ने अपने जीवन में सेवा, विनम्रता और भक्ति के सिद्धांतों का पालन किया और सिख समुदाय का मार्गदर्शन किया।
गुरु अमर दास जी का प्रमुख योगदान
- 907 पवित्र बाणियाँ: गुरु अमर दास जी द्वारा रचित 907 शबद (भजन) श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में संकलित हैं, जो आज भी श्रद्धापूर्वक पढ़े और गाए जाते हैं।
- आनंद साहिब: उन्होंने ‘आनंद साहिब’ की रचना की, जो सिखों की पाँच महत्वपूर्ण दैनिक प्रार्थनाओं में से एक है। यह बाणी आंतरिक आनंद और शांति का प्रतीक मानी जाती है।
- लंगर सेवा को सुदृढ़ किया: उन्होंने लंगर (सामुदायिक रसोई) की परंपरा को और भी मजबूत बनाया। गुरु जी ने आदेश दिया कि गुरु के दर्शन से पहले सभी आगंतुक, चाहे उनकी जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो, पहले लंगर में बैठकर भोजन करें। सम्राट अकबर भी इस परंपरा का सम्मान करते हुए साधारण लोगों के साथ पंगत में बैठे थे।
- जाति प्रथा के खिलाफ अभियान: गुरु अमर दास जी ने जातिवाद का कड़ा विरोध किया और सिख धर्म में सबको समान दृष्टि से देखने की परंपरा को स्थापित किया।
- महिलाओं का उत्थान: उन्होंने महिलाओं को समान अधिकार दिए। सती प्रथा, पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियों का विरोध किया और विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया।
- प्रशासनिक व्यवस्था ‘मंजी प्रणाली’: बढ़ती सिख संगतों के प्रबंधन हेतु गुरु जी ने ‘मंजी प्रणाली’ की स्थापना की, जिसके तहत संगतों का सुचारू संचालन संभव हुआ।
- गोइंदवाल साहिब की स्थापना: गुरु अमर दास जी ने 1552 में ब्यास नदी के तट पर गोइंदवाल शहर की स्थापना की, जो आगे चलकर एक प्रमुख धार्मिक केंद्र बना।
गुरु अमर दास जी के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
- गुरु अमर दास जी ने 73 वर्ष की आयु में सिखों के तीसरे गुरु के रूप में गुरु गद्दी संभाली थी।
- सम्राट अकबर ने भी गोइंदवाल साहिब में लंगर में बैठकर साधारण लोगों के साथ भोजन किया था।
- गुरु अमर दास जी ने 907 बाणियाँ रचीं, जो श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में संकलित हैं।
- उन्होंने सती प्रथा और पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों का विरोध किया और विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया।
- जाति-पाति के भेदभाव को समाप्त कर, सबको समान दृष्टि से देखने की शिक्षा दी।
- सिख धर्म में लंगर सेवा को व्यवस्थित और अनिवार्य बनाकर सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया।
- गुरु अमर दास जी ने गोइंदवाल साहिब नगर की स्थापना की, जो एक प्रमुख सिख धार्मिक स्थल बन गया।
- ‘आनंद साहिब’ बाणी का उपहार गुरु जी ने दिया, जो आज भी लाखों सिखों को आत्मिक आनंद प्रदान करता है।
जीवन का अंतिम चरण
गुरु अमर दास जी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में भाई जेठा (गुरु राम दास जी) को चौथे गुरु के रूप में नियुक्त किया। 16 सितंबर 1574 को 95 वर्ष की आयु में गुरु जी ने अपना नश्वर शरीर त्यागा। उनका संदेश आज भी जीवित है, और उनकी आत्मा सिख समुदाय तथा मानवता को प्रेरित करती रहती है।
गुरु अमर दास जी का जीवन समर्पण, सेवा और समानता का आदर्श उदाहरण है। उनके कार्यों ने सिख धर्म की नींव को और अधिक मजबूत किया और मानवता को एक नई दिशा दी। आज भी उनकी शिक्षाएँ शिक्षा, सेवा और भाईचारे का अमूल्य संदेश देती हैं।
“सेवा और नम्रता से ही परमात्मा की प्राप्ति होती है। जाति, धर्म और सामाजिक स्थिति का भेदभाव त्याग कर सबको एक समान दृष्टि से देखो।”
— गुरु अमर दास जी
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