माता वैष्णो देवी की कहानी – श्रद्धा और भक्ति की शक्ति

माता वैष्णो देवी की कथा भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। जानिए कैसे माँ वैष्णो देवी ने भैरवनाथ का वध कर भक्तों को आस्था का मार्ग दिखाया।
सच्ची भक्ति और श्रद्धा से ही भगवान तक पहुँचा जा सकता है। माता वैष्णो देवी की कथा इसी सत्य का प्रमाण है। इस कहानी के माध्यम से हम जानेंगे कि कैसे माँ वैष्णो देवी की महिमा ने भक्तों के जीवन को आस्था और प्रेम से भर दिया।
गौरी की पहली वैष्णो देवी यात्रा
गौरी की स्कूल की परीक्षाएँ खत्म हो चुकी थीं। अब वह अपने माता-पिता के साथ एक विशेष यात्रा पर जाने के लिए उत्साहित थी। उसके माता-पिता ने माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए जम्मू और कश्मीर के कटरा जाने का निर्णय लिया। गौरी के लिए यह उसकी पहली वैष्णो देवी यात्रा थी, इसलिए वह बहुत उत्साहित थी।
अगले दिन, गौरी ने खुशी-खुशी अपना सामान पैक किया और अपने माता-पिता के साथ इस पवित्र यात्रा के लिए निकल पड़ी। वे ट्रेन से यात्रा कर रहे थे, जो लगभग आठ घंटे की थी। सफर के दौरान गौरी को थोड़ी बोरियत महसूस होने लगी। उसने अपने पिता से कहा, “पापा, कोई कहानी सुनाइए।”
पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, “हम माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए जा रहे हैं, तो क्यों न मैं तुम्हें माता की ही कथा सुनाऊँ?” गौरी ने उत्सुकता से सिर हिला दिया।
माता वैष्णो देवी की पौराणिक कथा
बहुत समय पहले, कटरा के पास हंसाली गाँव में एक गरीब ब्राह्मण, पंडित श्रीधर रहते थे। वे माता वैष्णो देवी के परम भक्त थे और पूरे श्रद्धा भाव से उनकी पूजा करते थे।
एक दिन माता वैष्णो देवी ने एक छोटी कन्या के रूप में श्रीधर के स्वप्न में आकर उनसे गाँव में भंडारे (भोजन प्रसाद) का आयोजन करने के लिए कहा। श्रीधर गरीब थे, लेकिन माता पर उनकी अटूट श्रद्धा थी। उन्होंने बिना किसी संकोच के भंडारे का आयोजन किया।
भंडारे में योगी भैरवनाथ भी अपने 360 शिष्यों के साथ आए। भैरवनाथ ने श्रीधर से सभी को भोजन कराने के लिए कहा। श्रीधर चिंतित हो गए क्योंकि उनके पास इतने लोगों को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं था। भैरवनाथ ने उनकी इस स्थिति का उपहास उड़ाया और माता की शक्ति पर संदेह किया।
तभी माता वैष्णो देवी एक छोटी कन्या के रूप में प्रकट हुईं और अपनी दिव्य शक्ति से सभी को भरपेट भोजन कराया। यह देखकर भैरवनाथ समझ गए कि यह कन्या साधारण नहीं है।
भैरवनाथ ने माता की वास्तविक शक्ति को जानने के लिए उनका पीछा करना शुरू कर दिया। माता त्रिकुटा पहाड़ियों की ओर चल पड़ीं और एक गुफा में जाकर ध्यान में बैठ गईं। भैरवनाथ ने वहाँ पहुँचकर माता को परेशान किया। इस पर माता ने अपना महाकाली रूप धारण किया और भैरवनाथ का वध कर दिया।
भैरवनाथ की आत्मा ने माता से क्षमा माँगी। माता ने उसे क्षमा कर दिया और उसे मोक्ष प्रदान किया। इसी कारण भैरवनाथ को वैष्णो देवी मंदिर के समीप भैरव घाटी में स्थान मिला।
श्रीधर बहुत दुखी थे कि माता वैष्णो देवी अचानक कहाँ चली गईं। माता ने स्वप्न में श्रीधर को दर्शन दिए और त्रिकुटा पहाड़ियों में स्थित अपनी पवित्र गुफा का पता बताया। श्रीधर ने वहाँ जाकर तीन पिंडियों के रूप में माता वैष्णो देवी के दर्शन किए। ये तीन पिंडियाँ माता काली, माता लक्ष्मी और माता सरस्वती के रूप में मानी जाती हैं।
श्रीधर ने अपना पूरा जीवन माता वैष्णो देवी की सेवा और पूजा में समर्पित कर दिया। तभी से इस पवित्र स्थान पर माता के दर्शन के लिए भक्तों का ताँता लगने लगा।
गौरी का आस्था से भर जाना
गौरी इस कथा को सुनकर भाव-विभोर हो गई। उसके मन में माता के प्रति गहरी श्रद्धा जाग उठी। थोड़ी देर बाद ट्रेन जम्मू स्टेशन पहुँच गई। गौरी और उसका परिवार कटरा से माता के भवन तक की 13 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई के लिए तैयार हो गए।
रास्ते में वे बाण गंगा पहुँचे, जहाँ उन्होंने पवित्र जल से अपने हाथ-पैर धोए। फिर वे चरण पादुका पहुँचे, जहाँ माता के पवित्र चरणों के निशान हैं।
लंबी यात्रा के बाद गौरी और उसके माता-पिता माता वैष्णो देवी की पवित्र गुफा में पहुँचे। वहाँ उन्होंने तीन पिंडियों के रूप में विराजमान माता के दर्शन किए। गौरी ने माता से बुद्धि, शक्ति और सुखी जीवन का आशीर्वाद माँगा।
यात्रा के बाद पूरा परिवार भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा से भर गया। उन्होंने इस श्रद्धा और प्रेम का प्रकाश दूसरों में भी बाँटने का संकल्प लिया।
माता वैष्णो देवी की यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। जब श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान का स्मरण किया जाता है, तो ईश्वर स्वयं मार्गदर्शन करने के लिए प्रकट होते हैं।
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