वक्त ही नहीं मिला
इस कविता में समय की कमी और जीवन की आपाधापी के विषय को गहराई से व्यक्त किया गया है, जो पाठकों को जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करता है।
यह खूबसूरत कविता "वक्त ही नहीं मिला" मूल रूप से श्री युसुफ बशीर कुरेशी जी द्वारा लिखी गई है।
कहा किसी ने, के आ मिलो,
तो वक्त ही नहीं मिला,
किसी का दर्द बाँट लो,
तो वक्त ही नहीं मिला,
जो चाहा कुछ लिख कभी ,
तो वक्त ही नहीं मिला,
आराम करना चाहा जो,
तो वक्त ही नहीं मिला,
माँ बाप को मैं वक़्त दू,
तो वक्त ही नहीं मिला,
ये सेहत गिर रही थी जब,
मुझसे कहा ये भाई ने तब,
के सारे काम छोड़ दो,
किसी डॉक्टर से वक़्त लो,
तो वक्त ही नहीं मिला,
कामो की एक कतार है,
जो ज़ेहन पर सवार है,
पिछले जो समेट लू,
फेहरिस्त नयी तय्यार है,
कैसे सब ख़तम करू,
के वक्त ही नहीं मिला,
कैसे बनेगी बात फिर,
के उम्र सब गुजार दी,
और वक़्त ही मिला नहीं,
तो वक़्त ये कहाँ गया,
के वक्त ही नहीं मिला.
“वक्त ही नहीं मिला कविता” हमारे जीवन में समय की कमी के विषय पर गहराई से चिंतन करती है। इसमें वर्णित है कि कैसे हम हर दिन की भागदौड़ में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि अपनों के लिए, अपने सपनों के लिए, यहाँ तक कि अपनी सेहत के लिए भी समय निकाल पाना मुश्किल हो जाता है। लेखक ने बहुत ही सूक्ष्मता से यह दर्शाया है कि कैसे हम वक्त की कमी का रोना रोते हैं, परंतु सच्चाई यह है कि हम उसे सही तरीके से प्रबंधित नहीं कर पाते। यह कविता एक प्रेरणादायक संदेश देती है कि हमें अपने समय की कीमत को पहचानना चाहिए और उसे उन चीजों पर खर्च करना चाहिए जो वास्तव में मायने रखती हैं। इस कविता के माध्यम से, लेखक हमें जीवन के प्रति एक नयी दृष्टिकोण प्रदान करते हैं, और हमें यह सिखाते हैं कि कैसे हम अपने समय को अधिक सार्थक बना सकते हैं।
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