खंडहर की संवेदनाएँ: इंसानियत की पुकार

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खंडहर में सिर्फ ईंट और गारा नहीं, बल्कि असंख्य भावनाएँ और आस्था भी बसी होती हैं। जानें कैसे इंसानियत का सम्मान हमें सच्ची पूजा की ओर ले जाता है

टूटता है जब कोई खंडहर
किसी मंदिर या मस्जिद का
बना नहीं होता वो केवल
ईंट, मिट्टी, गारे से।

भरी होती हैं भावनाएँ
आम आदमी की उसमें
जो नहीं लेता दाम
किसी भी सियासी नारे का।

जुड़ी होती है उसमें
उसकी आस्था और श्रद्धा।

उस खंडहर से
असल में ध्वस्त होता है
उसी के दिल बेचारे का।

ना तोड़ो दिल इंसान का
पत्थर के लिए
बस्ता है खुदा उसी में हर प्यारे का।

कि खंडहर नहीं होता – खंडहर केवल
उसमें रहता है दिल एक इंसान बेचारे का।

कि होकर जुनूनी मिलता नहीं
ईश्वर, अल्लाह या कि रब।

ऐ सुनो
ये तो वो शै है
जो जीत लेती है दिल हर हारे का।
जीत लेती है दिल हर हारे का।

खंडहर टूटने की आहट सिर्फ ईंट, मिट्टी और गारे का क्षरण नहीं होती। यह उस सामान्य आदमी की भावनाओं का विघटन है, जिसने कभी इस मंदिर या मस्जिद को अपने आस्था और श्रद्धा से सींचा था। यह कविता हमें याद दिलाती है कि एक खंडहर के पीछे छिपी होती हैं असंख्य कहानियाँ और संवेदनाएँ, जो किसी भी सियासी नारे से परे होती हैं।

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