हिन्दी भाषा: माँ की तरह अनुपम और अद्वितीय

हिन्दी भाषा की महिमा

इस कविता में हिन्दी भाषा की महिमा को बयां किया गया है। हिन्दी को मां जैसी ममता और सन्मान दिया गया है।

हिन्दी है माथे की बिंदी,
इसके बिन जग सूना है!
जब इसका सम्मान करें सब,
मन हर्षाए दूना है!!
इसकी ऊँची शान हमेशा,
कोई और न भाषा ऐसी है!
अन्य सभी हैं मौसी जैसी,
यही मेरी माँ जैसी है!!!!
कोई गिला नहीं औरों से,
हिंदी की कुछ बात और है!!!
“जय हिन्दी जय हिन्दुस्तान”….
सर्वत्र गूँजता
यही शोर है,
सर्वत्र गूँजता यही शोर है !!


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