जिद्दु कृष्णमूर्ति: आत्म-जागृति के शिक्षक
जिद्दु कृष्णमूर्ति, एक महान विचारक और शिक्षक, जिन्होंने आत्म-जागृति और स्वतंत्रता की शिक्षा दी, आज भी उनकी शिक्षाएं लोगों को जीवन के गहरे अर्थ की खोज के लिए प्रेरित करती हैं। पढ़ें उनकी जीवन गाथा और विचार।
जिद्दु कृष्णमूर्ति का नाम सुनते ही एक ऐसे विचारक और शिक्षक की छवि उभरती है जिन्होंने आत्म-जागृति और स्वतंत्रता के महत्व को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। उनका जन्म 12 मई 1895 को आंध्र प्रदेश के मदनपल्ली में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम संजीवम्मा था और पिता का नाम जिद्दु नारायनैया। जिद्दु कृष्णमूर्ति का जीवन दर्शन और उनके विचार आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।
शुरुआती जीवन और शिक्षा
कृष्णमूर्ति का बचपन साधारण था, लेकिन उनके जीवन में बदलाव तब आया जब जनवरी 1911 में उडचार में “ऑर्डर ऑफ़ द स्टार इन द ईस्ट” की स्थापना हुई। इस संगठन के अध्यक्ष के रूप में कृष्णमूर्ति ने आत्मिक जागरूकता और स्वतंत्रता की शिक्षा का प्रचार किया। 1920 में वे पेरिस गए और वहां उन्होंने फ्रेंच भाषा में कुशलता प्राप्त की। 3 अगस्त 1929 को, श्रीमती एनी बेसेन्ट और 3000 से अधिक स्टार सदस्यों की उपस्थिति में, कृष्णमूर्ति ने इस संगठन को भंग कर दिया, क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि सत्य और स्वतंत्रता की खोज किसी संगठन के माध्यम से नहीं हो सकती।
कृष्णमूर्ति के दार्शनिक विचार
कृष्णमूर्ति के विचारों पर प्रकृति का गहरा प्रभाव था। उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा का मतलब केवल किताबों से सीखना नहीं है, बल्कि जीवन और प्रकृति के सौंदर्य को समझना भी है।
- दर्शन: कृष्णमूर्ति के अनुसार, दर्शन वह है जो हमें प्रेम, जीवन और प्रज्ञा के प्रति जागरूक करता है। उनका मानना था कि जो दर्शन हमें सिखाया जाता है, वह अक्सर सत्य के वास्तविक स्वरूप को देखने की क्षमता को कम कर देता है।
- सत्य: कृष्णमूर्ति कहते थे कि सत्य एक पथहीन भूमि है। सत्य तक पहुँचने के लिए कोई विशेष मार्ग नहीं है; यह हमारे भीतर ही छुपा होता है।
- दुख और दुख भोग: उनके अनुसार, दुख मानसिक पीड़ा है जो हमारे भूत और भविष्य की स्मृतियों से उपजती है। इस दुख को दूर करने के लिए व्यक्ति को अपनी मनोवैज्ञानिक स्थितियों को समझना आवश्यक है।
- भय: कृष्णमूर्ति भय को मानव मन की गम्भीर बीमारी मानते थे, जो आत्मज्ञान के माध्यम से ही समाप्त हो सकती है।
- मृत्यु: उनके अनुसार, मन की मृत्यु ही वास्तविक मृत्यु है। शारीरिक मृत्यु तो स्वाभाविक घटना है, लेकिन मन की मृत्यु जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने से आती है।
कृष्णमूर्ति के शैक्षिक विचार
कृष्णमूर्ति के अनुसार, वर्तमान शिक्षा प्रणाली केवल महत्वाकांक्षा को बढ़ावा देती है, जो समाज में विभिन्न बुराइयों को जन्म देती है। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल उपाधि प्राप्त करना नहीं होना चाहिए, बल्कि व्यक्ति को एक पूर्ण मानव बनाना चाहिए, जो जीवन के हर पहलू को समझ सके।
कृष्णमूर्ति के अनुयायियों ने उनके विचारों को मूर्त रूप देने के लिए भारत, इंग्लैंड और कैलिफोर्निया में कई विद्यालयों की स्थापना की। इनमें से कुछ प्रमुख हैं राजघाट का बेसेंट स्कूल, वाराणसी, श्रृषि वैली स्कूल, चिन्तूर, और वैली स्कूल, रानीखेत।
कृष्णमूर्ति की रचनाएँ
कृष्णमूर्ति ने शिक्षा और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- शिक्षा और संवाद
- शिक्षा और जीवन का तात्पर्य
- ध्यान
- विज्ञान एवं सृजनशीलता
जिद्दु कृष्णमूर्ति का जीवन और उनके विचार आज भी हमें आत्म-जागृति और स्वतंत्रता का महत्व सिखाते हैं। शिक्षक दिवस के अवसर पर, उनके शिक्षण के मूल्यों को अपनाकर हम एक नई दिशा में शिक्षा का प्रचार कर सकते हैं।
कृष्णमूर्ति का मानना था कि सच्ची शिक्षा वही है जो हमें जीवन की गहराई को समझने और उसके सौंदर्य को महसूस करने के लिए प्रेरित करे। उनकी शिक्षाएं न केवल शिक्षकों के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं जो जीवन के वास्तविक अर्थ की खोज में है।
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