झांसी की रानी – एक प्रेरणादायक कहानी

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झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी से जुड़ी यह कहानी बच्चों को साहस, देशभक्ति और आत्मबल की अनमोल सीख देती है।

एक नई कहानी की माँग

हर रात की तरह उस रात भी राज और प्रिया अपनी प्यारी दादी माँ के पास कहानी सुनने आ पहुंचे। दादी माँ की कहानियों का जादू ऐसा था कि उनके बिना नींद ही नहीं आती थी। लेकिन आज कुछ अलग था। प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा,
“दादी माँ, आज कोई ऐसी कहानी सुनाइए जो हमने पहले कभी नहीं सुनी हो।”

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राज भी तुरंत बोल पड़ा, “हाँ दादी! एकदम नई और मज़ेदार कहानी सुनाइए ना।”
दादी माँ ने प्यार से दोनों बच्चों की ओर देखा और कहा,
“अच्छा तो आज सुनो एक ऐसी रानी की कहानी, जो न सिर्फ बहादुर थी, बल्कि जिसने पूरे अंग्रेज़ी साम्राज्य को हिला दिया था – झांसी की रानी लक्ष्मीबाई।”

एक नन्ही बच्ची से वीरांगना बनने तक

दादी माँ ने कहानी की शुरुआत करते हुए बताया,
“बच्चों, रानी लक्ष्मीबाई का असली नाम मणिकर्णिका था, लेकिन घर में सब उन्हें मनु कहकर पुकारते थे। छोटी सी उम्र में ही उनकी माँ चल बसीं, लेकिन उनके पिता ने उन्हें कभी किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दी।”

मनु पढ़ाई के साथ-साथ घुड़सवारी, तलवारबाज़ी और तीरंदाज़ी में भी निपुण हो गई थीं। जब वो सिर्फ 14 साल की थीं, तब उनकी शादी झांसी के राजा गंगाधर राव से हुई और तभी से उनका नाम पड़ा – लक्ष्मीबाई।

राजा के देहांत के बाद, रानी ने गोद लिए बेटे के साथ झांसी की जिम्मेदारी संभाली। लेकिन अंग्रेज़ों ने उनके गोद लिए बेटे को उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया और झांसी पर कब्ज़ा करने का आदेश जारी किया।

दादी माँ ने जोश से आगे बताया,
“लेकिन रानी लक्ष्मीबाई कोई आम स्त्री नहीं थीं। उन्होंने डटकर मुकाबला करने का फैसला किया। उन्होंने एक सेना तैयार की, जिसमें कई वीर महिलाएं भी शामिल थीं।”’

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प्रिया ने दादी माँ को कहानी के बीच में ही रोकते हुए कहा, “क्या रानी लक्ष्मीबाई इतनी ताकतवर थी?” दादी ने बताया, “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी”।
हाँ बेटा, अपने बेटे को पीठ पर बांधकर वो एक वीर मर्द योद्धा की तरह घुड़सवार हो मैदान में पहुंच गई। उसके हाथ में एक चमकती तलवार थी। एक अंग्रेजी दूत रानी के पास आया और चेतावनी देने लगा, “लक्ष्मीबाई अभी भी वक्त है, झांसी हमें दे दो”। लक्ष्मीबाई ने एक वीरांगना की तरह उत्तर दिया, “जब तक मैं जिंदा हूं, मेरी झांसी को कोई छू भी नहीं सकता। मैं झांसी नहीं दूंगी।”

“मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी!”

प्रिया ने बीच में सवाल किया, “दादी माँ, क्या रानी के पास कोई जादूई तलवार थी?”
दादी मुस्कुरा कर बोलीं, “नहीं बिटिया, उसकी सबसे बड़ी ताकत थी – उसका हौसला और निडरता।”

अंत तक न रुकी रानी की तलवार

दादी माँ ने कहानी में उत्साह बढ़ाते हुए बताया,
“एक दिन अंग्रेजों ने झांसी पर जोरदार हमला कर दिया। रानी ने डटकर मुकाबला किया, लेकिन दुश्मनों की संख्या बहुत ज़्यादा थी। एक अंग्रेज सैनिक ने पीछे से हमला किया और रानी घायल हो गईं। वो वीरगति को प्राप्त हो गईं, लेकिन उनकी बहादुरी को खुद अंग्रेजों ने सलाम किया।”

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कहानी से मिली प्रेरणा

कहानी खत्म होते-होते दादी माँ की आंखों में नमी थी। लेकिन प्रिया और राज की आंखों में जोश और गर्व था।
राज ने कहा, “दादी माँ, हम भी रानी लक्ष्मीबाई जैसे बहादुर बनेंगे!”
प्रिया ने जोड़ा, “हम भी कभी हार नहीं मानेंगे!”


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