तीन मूर्तियाँ: अकबर और बीरबल का अनोखा किस्सा

तीन मूर्तियाँ

बीरबल की बुद्धिमानी और सच्चाई को उजागर करने वाली तीन मूर्तियों की यह रोचक कहानी।

बीरबल कई दिनों से अकबर के दरबार में नहीं आए थे। मुल्ला दो पियाज़ा जैसे दरबारी, जो अकबर के ऊपर बीरबल के प्रभाव से जलते थे, ने बादशाह के मन में बीरबल के खिलाफ ज़हर भर दिया था। “आख़िरकार, यही तो है जो हालिया बगावत का ज़िम्मेदार है,” वे धीरे-धीरे अकबर के कानों में फुसफुसाते। बीरबल ने बादशाह का विश्वास तोड़ा है… वे उसे गद्दार बताते हुए बादशाह का मन बदलने लगे।

अकबर ने इन आरोपों पर बीरबल से कुछ नहीं कहा। आख़िर, इनकी कोई ठोस सबूत भी नहीं था। लेकिन बीरबल ने बादशाह के मन में उठ रहे अविश्वास और शक की हल्की झलक पा ली और सोच लिया कि कुछ समय दरबार से दूर ही रहना बेहतर होगा।

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दिन बीतते गए। अकबर को अपने तेज बुद्धि वाले सलाहकार की कमी खलने लगी। लेकिन बीरबल दरबार में लौटने से अब भी दूर ही रहे।

एक सुबह, एक कुशल शिल्पकार दीवान-ए-खास में बादशाह अकबर के लिए एक अद्भुत उपहार लेकर आया। यह उपहार था – शुद्ध सोने की बनी तीन एक जैसी मूर्तियाँ।

“यह कितनी खूबसूरत हैं!” अकबर ने कहा। “और बिल्कुल एक जैसी!”

शिल्पकार ने सिर हिलाते हुए कहा, “नहीं, जहाँपनाह। ये तीनों एक जैसी नहीं हैं। और इनमें से एक मूर्ति बाकी दो से श्रेष्ठ है। लेकिन इसे पहचानने के लिए बहुत तेज़ नज़र और गहरी समझ चाहिए।”

मूर्तियाँ एक-एक कर सभी दरबारियों के हाथों में घूमीं, पर किसी ने भी उनमें कोई अंतर नहीं पाया। यहाँ तक कि बादशाह अकबर भी उनमें कोई अंतर नहीं देख सके।

“केवल एक व्यक्ति ही ऐसा है जो इस भेद को समझ सकता है,” बादशाह ने कहा। “बीरबल को बुलाओ।”

कुछ ही मिनटों में बीरबल दरबार में आए और झुककर बादशाह को सलाम किया। अकबर ने सोचा, “मुझे विश्वास नहीं होता कि यह व्यक्ति धोखेबाज़ हो सकता है। इसे देखकर मेरा मन प्रसन्न हो जाता है!”

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“इन तीन मूर्तियों को ध्यान से देखो, बीरबल,” अकबर ने कहा। “क्या इनमें कोई अंतर है, या ये बिल्कुल एक जैसी हैं? अगर इनमें अंतर है, तो तुम्हारे हिसाब से इनमें से कौन सी सबसे अच्छी है?”

बीरबल ने मूर्तियों को कुछ मिनटों तक ध्यान से देखा। फिर उन्होंने एक बारीक धातु की तार मंगवाई और उसे हर मूर्ति के बाएँ कान में एक छोटा छेद खोजकर उसमें डाला।

पहली मूर्ति में तार बाएँ कान से डाला और वह दाएँ कान से बाहर आ गया। दूसरी मूर्ति में तार कान से डालने पर मुँह से बाहर निकला। तीसरी मूर्ति में तार बाएँ कान से अंदर गया और पेट में जाकर अटक गया; वह बाहर नहीं निकला।

“जहाँपनाह,” बीरबल ने अकबर की ओर पहली बार देख कर कहा, “यह तीनों मूर्तियाँ दिखने में भले ही एक जैसी लगें, पर ये बहुत अलग हैं। इन्हें तीन तरह के सलाहकारों से तुलना कर सकते हैं।”

“पहली मूर्ति उन सलाहकारों का प्रतीक है, जो राजा की बातें सुनते हैं, पर ध्यान नहीं देते या उसे याद नहीं रखते। उनकी बातें एक कान से अंदर और दूसरे कान से बाहर निकल जाती हैं।”

“दूसरी मूर्ति उन सलाहकारों का प्रतीक है, जो राजा की बातें सुनते तो हैं, पर उसे पहले अवसर पर ही हर किसी से कह डालते हैं। उनसे कोई भी बात गुप्त नहीं रहती।”

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“तीसरी मूर्ति उन सलाहकारों का प्रतीक है, जो राजा की बातें सुनते हैं और उसे अपने तक ही सीमित रखते हैं। वह ना ही सुनी हुई बातें भूलते हैं और ना ही राजा के विश्वास को तोड़ते हैं। मेरी विनम्र राय में, जहाँपनाह, तीसरा सलाहकार ही सबसे अच्छा है। इसलिए तीसरी मूर्ति, जिसमें तार अंदर गया और बाहर नहीं निकला, सबसे श्रेष्ठ है।”

अकबर ने उस शिल्पकार की ओर देखा जिसने ये मूर्तियाँ बनाई थीं। “यह बिल्कुल सही है, जहाँपनाह,” शिल्पकार ने कहा।

“बीरबल,” अकबर ने स्नेह भरे स्वर में कहा, “तुममें सिर्फ़ तेज़ नज़र और गहरी बुद्धि ही नहीं, बल्कि एक सच्चा और वफ़ादार दिल भी है। ये तीन मूर्तियाँ तुम्हारी हैं। इन्हें हमारी तरफ से तुम्हारी योग्यता के सम्मान के प्रतीक के रूप में स्वीकार करो।”

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