शिवपुरी की सवारी
क्या आपने बीरबल की बुद्धिमानी की यह अनोखी कहानी सुनी है? पढ़ें ‘शिवपुरी की सवारी’ और जानें कैसे उन्होंने सबको चौंका दिया!
एक दिन बीरबल के सामने खाना रखा था, लेकिन उन्होंने उसे छुआ तक नहीं। वह उदास बैठे थे। उनकी पत्नी उन्हें मनाने की कोशिश कर रही थी।
“आप कुछ खा लीजिए,” उनकी पत्नी ने कहा।
“मुझे भूख नहीं है,” बीरबल ने मच्छर को भगाते हुए चिढ़कर जवाब दिया।
“पर आपने पूरे दिन कुछ भी नहीं खाया!” उनकी पत्नी ने जोर दिया।
“मुझे पता है! मुझे पता है!” बीरबल झुंझलाकर बोले। “समझ नहीं आता, बादशाह अकबर अपनी बुद्धि का इस्तेमाल क्यों नहीं करते! सुनो, कल राजा टोडरमल ने कहा कि अगर मैं सचमुच चतुर हूं, तो मुझे एक ऐसी घटना बतानी चाहिए जो कभी न घटी हो, न घट रही हो, और न कभी घटेगी! टोडरमल मुझे नापसंद करता है, और बादशाह को यह बात पता है! फिर भी उन्होंने कहा, ‘बीरबल, तुम्हारे पास दो हफ्ते हैं। कुछ सोचो, वरना अपनी मूर्खता स्वीकार करो!’“
“कम से कम उन्होंने आपका सिर कटवाने की बात तो नहीं कही,” उनकी पत्नी ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा। “अब आप खाना खाइए। मैं शिव जी से प्रार्थना करूंगी कि वे आपकी मदद करें।”
“शिव जी क्या करेंगे…” बीरबल ने कहना शुरू किया, फिर अचानक रुक गए। राजा टोडरमल की शिव भक्ति प्रसिद्ध थी। बीरबल के मन में एक विचार आया, जो धीरे-धीरे एक योजना में बदल गया। उनकी आंखों में चमक आ गई। उन्होंने खाना अपने पास खींचा और खाने लगे।
आधी रात हो चुकी थी। राजा टोडरमल अपने घर के बाहर बने शिव मंदिर में प्रार्थना कर रहे थे। तभी घंटी की आवाज से उनकी ध्यान भंग हुआ। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा और दंग रह गए! शिव जी स्वयं उनके सामने खड़े थे! उनके तीखे नेत्र, भस्म से लिपटा शरीर, जटाएं, त्रिशूल, और उनके साथ नंदी बैल – सब कुछ ठीक वैसा ही था जैसा उन्होंने कल्पना की थी।
राजा टोडरमल झुककर शिव जी के चरणों में गिर पड़े।
बीरबल ने अपने गले में लटके मृत सांप को एडजस्ट किया। यह काफी असुविधाजनक था, लेकिन उन्होंने खुद को शाबाशी दी कि टोडरमल ने उन्हें पहचाना नहीं।
“वत्स,” बीरबल ने गहरी, ईश्वरीय आवाज में कहा, “तुमने वर्षों तक मेरी भक्ति की है। अब मैं तुम्हें शिवपुरी ले जाने आया हूं, जहां अनंत सुख है।”
राजा टोडरमल की खुशी का ठिकाना न रहा। “प्रभु! मुझे यह सौभाग्य कैसे मिला! लेकिन, क्या मैं अपने परिवार और बादशाह से विदा लेने के लिए एक दिन का समय मांग सकता हूं?”
“तुम्हारी यह इच्छा पूरी होगी,” बीरबल ने कहा। “कल रात यहीं आना।”
अगली रात, राजा टोडरमल शिव मंदिर के बाहर खड़े थे। घंटी की आवाज आई और शिव जी प्रकट हुए।
“आओ, वत्स,” बीरबल बोले। “शिवपुरी का मार्ग खतरों से भरा है। इंसानी आंखें उन खतरों को सहन नहीं कर सकतीं। इसलिए, तुम्हें इस बोरे में छुपना होगा। रास्ते में अगर तुम्हें चुभन या चोट लगे, तो चुप रहना। ध्यान शिवपुरी पर लगाना।”
राजा टोडरमल बिना सवाल किए बोरे में घुस गए। बीरबल ने बोरे में सांस लेने के लिए छोटे-छोटे छेद कर रखे थे। उन्होंने बोरे को नंदी की पीठ पर लादा और शिवपुरी की यात्रा शुरू की।
दो घंटे तक नंदी बैल आगरा की सड़कों पर चलता रहा। बीरबल बीच-बीच में बोरे को चुटकी काटते या थपकी मारते। लेकिन राजा टोडरमल सब कुछ सहते रहे।
सुबह के समय, बीरबल ने नंदी को आगरा की सब्जी मंडी में रोक दिया। उन्होंने बोरे को एक सब्जी वाले की दुकान के पास रख दिया और चुपचाप घर लौट गए।
आधा घंटा बाद, मंडी गुलजार हो गई। एक सब्जी वाले ने बोरे को देखा और पूछा, “यह क्या है?”
“शायद सड़े हुए खरबूज हैं,” दूसरे ने बोरे को ठोकर मारते हुए कहा।
राजा टोडरमल यह सहन नहीं कर सके। “खोलो इस बोरे को, बदमाशों!” वह गरजे। “मैं दिखाता हूं इसमें क्या है!”
शाम को दीवान-ए-खास में बादशाह अकबर और उनके दरबारी इकट्ठा हुए।
“बीरबल,” बादशाह बोले, “दो हफ्ते पूरे हो गए। तुम्हें वह घटना बतानी थी जो न घटी हो, न घट रही हो, और न कभी घटेगी। क्या तुम्हारे पास जवाब है, या हार मानते हो?”
बीरबल मुस्कुराए। “जहांपनाह, कल्पना कीजिए कि राजा टोडरमल को एक बोरे में डालकर नंदी बैल पर लादा जाए, और वह सोचें कि वे शिवपुरी जा रहे हैं, लेकिन वे आगरा की सब्जी मंडी पहुंच जाएं। क्या ऐसा कभी हो सकता है?”
सभी जोर से हंस पड़े। राजा टोडरमल असहज हो गए लेकिन चुप रहे।
“वाह, मेरे होशियार बीरबल!” बादशाह मुस्कुराए। “तुमने फिर अपनी बुद्धिमानी साबित कर दी।”
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