सच्चा सौदा: सेवा, परोपकार और मानव धर्म की प्रेरणा
गुरु नानक जी का सच्चा सौदा हमें सिखाता है कि सच्चा धन दूसरों की सेवा में है। पढ़ें कैसे यह कहानी गुरु-का-लंगर की नींव बनी।
गुरु नानक देव जी के जीवन में घटित एक विशेष घटना ने सेवा, परोपकार और मानव धर्म के महत्व को सिखाने की नींव रखी। यह घटना “सच्चा सौदा” के नाम से प्रसिद्ध है और यह संदेश देती है कि सच्चा लाभ केवल दूसरों की भलाई और सेवा में ही निहित है।
सच्चा सौदा की शुरुआत
यह घटना उस समय की है जब गुरु नानक देव जी मात्र 18 वर्ष के थे। उनके पिता, मेहता कालू जी, गुरु नानक के सांसारिक कार्यों में रुचि न लेने से चिंतित थे। उन्होंने सोचा कि शायद व्यापार गुरु नानक के लिए लाभकारी साबित हो और वे व्यावसायिक जिम्मेदारियों में रुचि लें।
उन्होंने गुरु नानक को 20 रुपए दिए और अपने सेवक भाई मरदाना को उनके साथ भेजा। उनके निर्देश थे कि गुरु नानक और भाई मरदाना कुछ ऐसा सामान खरीदें जिसे बेचकर लाभ कमाया जा सके।
सच्चा लाभ का अर्थ
गुरु नानक और भाई मरदाना सामान खरीदने के लिए तालवंडी से चूहड़खाना की ओर चल पड़े। रास्ते में उन्होंने एक ऐसा गांव देखा जहां लोग भूख, प्यास और बीमारी से बेहद परेशान थे। इनकी दशा देखकर गुरु नानक ने भाई मरदाना से कहा, “भूखों को भोजन कराना और जरूरतमंदों की मदद करना ही सच्चा लाभ है।”
गुरु नानक ने अपने पास के सारे पैसे भोजन और पानी खरीदने में लगा दिए और इन जरूरतमंदों को खाना खिलाया। यही वह क्षण था जब “लंगर” की परंपरा की शुरुआत हुई, जिसे सिख धर्म के अनुयायी आज भी पूरे समर्पण के साथ निभाते हैं।
गुरु ग्रंथ साहिब से प्रेरणा
गुरु नानक की इस घटना से प्रेरणा लेते हुए सिख धर्म में सेवा और साझा करने का महत्व सर्वोपरि है। गुरु ग्रंथ साहिब में इस विचार को इन शब्दों में प्रकट किया गया है:
“ਇਸ ਭੇਖੈ ਥਾਵਹੁ ਗਿਰਹੋ ਭਲਾ ਜਿਥਹੁ ਕੋ ਵਰਸ ਆਇ ॥”
अर्थात, “साधु भेष धारण करने से बेहतर गृहस्थ जीवन है, जहां से किसी को कुछ लाभ हो।”
गुरु नानक की शिक्षा
जब गुरु नानक इस कार्य के बाद वापस लौटे और उनके पिता मेहता कालू को यह बात पता चली, तो वे क्रोधित हो गए। उन्होंने इसे पैसे की बर्बादी समझा। लेकिन गुरु नानक ने उन्हें समझाया कि यह सच्चा सौदा था, क्योंकि इससे लोगों की मदद हुई और उनके दुख कम हुए।
हालांकि, मेहता कालू जी इसे नहीं समझ सके क्योंकि उनकी दृष्टि में सच्चा लाभ केवल धन कमाने में था।
गुरुद्वारा सच्चा सौदा साहिब
जहां गुरु नानक ने यह महान कार्य किया, वहां आज “गुरुद्वारा सच्चा सौदा साहिब” स्थित है। यह स्थान पाकिस्तान के फ़ारूक़ाबाद शहर में है और सिख धर्म के अनुयायियों के लिए यह सेवा और परोपकार का प्रतीक है।
सच्चा सौदा: मानवता की सेवा का प्रतीक
गुरु नानक देव जी द्वारा किया गया यह सच्चा सौदा मानवता की सेवा का सबसे बड़ा उदाहरण है। उनके द्वारा खर्च किए गए बीस रुपए ने लंगर की परंपरा को जन्म दिया, जो आज पूरी दुनिया में भूखों को भोजन और जरूरतमंदों को सहायता प्रदान कर रही है।
सच्चा सौदा केवल एक घटना नहीं है, यह एक संदेश है कि सच्चा व्यापार वह है जिसमें मानवता के कल्याण का भाव हो। यही सिख धर्म की शिक्षा और सच्चे मानव धर्म का उद्देश्य है।
सच्चा सौदा, एक सच्चा धर्म और सच्चा लाभ।
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