होली पर भक्त प्रहलाद की कहानी

प्रहलाद की भक्ति की इस कथा में होलिका के षड्यंत्र के बावजूद विश्वास और साहस की अदम्य शक्ति को उजागर किया गया है।
एक समय की बात है, एक शांत गाँव में एक छोटा, चंचल बच्चा रहता था जिसका नाम प्रहलाद था। प्रहलाद का दिल भगवान विष्णु के प्रति अटूट भक्ति से भरा था। सुबह की पहली किरण के साथ, वह अपने अलमारी में से अपने माता-पिता की उपेक्षा करते हुए मंदिर की ओर चल पड़ता, जहाँ उसे भगवान का असीम प्रेम अनुभव होता। उसकी मासूम आँखों में हर पल आशा की चमक रहती थी।
वहीं, प्रहलाद के पिता, हिरण्यकश्यप, एक शक्तिशाली राजा थे, लेकिन उनके मन में ईश्वर के प्रति कोई श्रद्धा नहीं थी। उनका अहंकार इतना गहरा था कि उन्होंने अपने बेटे की भक्ति को अपनी कमजोरियों का सामना करने का मौका समझा। हिरण्यकश्यप को लगता था कि शक्ति केवल इस दुनिया के दिखावे में निहित है, और उन्होंने कई बार प्रहलाद को चेतावनी दी, “बेटा, इस अंधविश्वास से दूर रहो,” लेकिन प्रहलाद की दिल में भगवान विष्णु के लिए जो सच्चा प्रेम था, वह किसी शब्दों से नहीं डगमगा सका।
गहरे दुःख और क्रोध में डूबे हुए, हिरण्यकश्यप ने ठाना कि अगर प्रहलाद का मन नहीं बदला, तो उसे जीवन की अग्नि में झोंक दिया जाएगा। उसने अपनी चालाकी से अपनी प्रिय बहन होलिका का हाथ थामा। होलिका, जिसे भगवान शंकर का वरदान प्राप्त था, एक अद्भुत चादर की सौगात मिली थी, जो अग्नि की लपटों से सुरक्षा प्रदान कर सकती थी। उस दिन, होलिका ने चुपचाप अपने कुटिल इरादों को अंजाम देने का निर्णय किया। उसने प्रहलाद को गोद में उठाया और दोनों को अग्नि की लपटों में बैठा दिया।
लेकिन जैसे ही आग ने प्रहलाद को घेरना शुरू किया, ऐसा प्रतीत हुआ मानो उसके भीतर की अटूट भक्ति ने एक अदृश्य कवच उड़ा दिया हो। उस चमत्कारिक चादर ने प्रहलाद की रक्षा की, जबकि होलिका स्वयं आग की आंच में पिघल गई। उस क्षण ने सबूत दिया कि सच्ची भक्ति में वह अदम्य शक्ति होती है, जो किसी भी अन्याय और अंधकार पर विजय प्राप्त कर सकती है।
इस कथा में न केवल अदम्य आस्था का जश्न मनाया गया, बल्कि यह भी समझ में आता है कि जब इंसान अपने दिल में ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम रखता है, तो वह किसी भी कठिनाई का सामना कर सकता है। प्रहलाद की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि सच्ची भक्ति और विश्वास की ताकत से, जीवन की अग्नि में भी हम उभरकर निकल सकते हैं।
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