कंस और भगवान श्रीकृष्ण की कथा: बुराई पर अच्छाई की विजय
यह कथा है क्रूर कंस और भगवान श्रीकृष्ण की, जहां अच्छाई ने बुराई को पराजित कर धर्म की स्थापना की। जानें इस प्रेरणादायक कथा के माध्यम से, कैसे बुरे कर्मों का अंत अवश्य होता है।
प्राचीन काल की बात है, आर्यावर्त के एक महान राज्य में उग्रसेन नाम के एक पराक्रमी राजा का शासन था। राजा उग्रसेन प्रजा के हित के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। उनका राज्य समृद्ध और शांतिपूर्ण था, और उनकी प्रजा उनसे अत्यधिक प्रेम करती थी। राजा उग्रसेन के दो संतानें थीं – एक बेटा, जिसका नाम कंस था, और एक बेटी, जिसका नाम देवकी था।
देवकी अपने नाम के अनुरूप ही विनम्र, शांत और स्नेहिल स्वभाव की थी। उसका हृदय कोमल था, और वह अपने पिता की तरह ही प्रजा के प्रति सहानुभूतिशील थी।
लेकिन, कंस बिल्कुल विपरीत था। वह स्वभाव से क्रूर, अभिमानी, और निर्दयी था। उसकी महत्वाकांक्षा और क्रूरता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी। राजा उग्रसेन अपने पुत्र के इस स्वभाव से बहुत चिंतित रहते थे। उन्हें भय था कि कंस की क्रूरता एक दिन राज्य को भारी संकट में डाल सकती है। कंस की आंखों में सत्ता का लोभ बस गया था, और वह अपने पिता की ताकत और प्रभाव को लेकर ईर्ष्या से भर गया था।
समय बीतता गया, और कंस का स्वभाव और भी अधिक क्रूर हो गया। एक दिन, जब उसने सोचा कि वह अब शक्तिशाली हो गया है, उसने अपने पिता को धोखे से कैद कर लिया और खुद को राजा घोषित कर दिया। राजा उग्रसेन, जो कभी अपनी प्रजा के लिए एक आदर्श थे, अब अपने ही पुत्र द्वारा कैद कर दिए गए थे।
कंस ने राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली, और अपनी क्रूर नीतियों के कारण पूरे राज्य में भय और आतंक फैल गया। प्रजा, जो पहले सुख-शांति से जीवन व्यतीत कर रही थी, अब कंस के अत्याचारों से त्रस्त हो गई।
इसी बीच, देवकी का विवाह राजा वासुदेव से हुआ। वासुदेव भी एक धार्मिक और सदाचारी व्यक्ति थे। देवकी और वासुदेव के विवाह के दिन, कंस ने उन्हें बहुत सम्मान दिया और दिखावे के लिए प्रेम का नाटक किया। लेकिन नियति कुछ और ही खेल रच रही थी।
विवाह के कुछ समय बाद, कंस को एक आकाशवाणी सुनाई दी। आकाशवाणी में कहा गया,
“देवकी का आठवां पुत्र बड़ा होकर कंस की मृत्यु का कारण बनेगा।”
इस भविष्यवाणी ने कंस को भीतर तक हिला दिया। वह भय और क्रोध से जल उठा और तुरंत अपनी तलवार लेकर देवकी को मारने के लिए दौड़ा।
वासुदेव ने कंस के क्रोध को शांत करने के लिए उसे समझाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा,
“हे कंस, देवकी का क्या दोष है? यह तो भाग्य का खेल है। तुम अपनी बहन को क्यों मारना चाहते हो? यदि तुम्हें इस भविष्यवाणी से डर है, तो मैं वादा करता हूँ कि हम अपने आठवें पुत्र को तुम्हारे हवाले कर देंगे।”
कंस ने थोड़ी देर विचार किया और फिर देवकी को मारने का विचार छोड़ दिया, लेकिन उसने दोनों को कैद में डाल दिया ताकि उनके सभी बच्चों को वह खुद मार सके।
कंस ने देवकी और वासुदेव को एक कड़ी पहरेदारी वाली जेल में डाल दिया। वहां, देवकी ने एक-एक करके सात पुत्रों को जन्म दिया, लेकिन हर बार कंस उन्हें निर्दयता से मार देता। देवकी और वासुदेव अपने बच्चों को खोने के दुःख में डूबे रहते, लेकिन वे दोनों ही धैर्य और विश्वास के प्रतीक थे। उन्होंने कभी भी अपनी नियति के सामने हार नहीं मानी और अपने आराध्य भगवान पर अटूट विश्वास बनाए रखा।
जब देवकी ने आठवें पुत्र को जन्म दिया, तो अद्भुत चमत्कार हुआ। वह कोई और नहीं बल्कि भगवान श्रीकृष्ण थे, जो स्वयं विष्णु के अवतार माने जाते हैं। जैसे ही श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, जेल के सभी ताले अपने आप खुल गए, और पहरेदार गहरी नींद में सो गए। इस चमत्कार को देखकर वासुदेव समझ गए कि यह भगवान का संकेत है।
उन्होंने तुरंत नवजात कृष्ण को एक टोकरी में रखा और उन्हें यमुना नदी के पार, गोकुल में नंद और यशोदा के घर पहुंचा दिया। भगवान की कृपा से यमुना नदी का जल भी उनके लिए रास्ता देने के लिए विभाजित हो गया।
वासुदेव ने श्रीकृष्ण को सुरक्षित नंद और यशोदा के पास छोड़ दिया और उनके स्थान पर एक नवजात कन्या को लेकर वापस जेल में आ गए।
जब कंस को देवकी के आठवें पुत्र के जन्म की खबर मिली, तो वह तुरंत उन्हें मारने के लिए जेल पहुंचा। लेकिन जैसे ही उसने उस कन्या को उठाया, वह कन्या आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर कंस को चेतावनी दी,
“कंस, तुम्हारा संहारक तो गोकुल में सुरक्षित है। तुम चाहे कितने भी प्रयास कर लो, लेकिन तुम उसे नहीं मार सकते।”
कंस इस चेतावनी से और भी भयभीत हो गया। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे गोकुल में जाकर सभी नवजात बच्चों को मार डालें। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य लीला से सभी बाधाओं को पार किया। वे गोकुल में बाल रूप में बड़े हुए, और उनकी बाल लीलाएं गोकुलवासियों के लिए आनंद का स्रोत बन गईं।
समय के साथ, श्रीकृष्ण युवा हुए और मथुरा वापस लौटे। वहां उन्होंने कंस का सामना किया और उसे पराजित कर अपने माता-पिता और नाना उग्रसेन को मुक्त कराया। श्रीकृष्ण ने अपने दुष्ट मामा कंस को मारकर उसके अत्याचारों का अंत किया, और मथुरा में धर्म और न्याय की पुनः स्थापना की।
भगवान श्रीकृष्ण की कथा से सीख:
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि बुराई चाहे कितनी भी प्रबल क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है। जो लोग दूसरों के साथ अन्याय और अत्याचार करते हैं, उन्हें उनके पापों का फल अवश्य मिलता है। इसलिए, सदैव सत्य, धर्म और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए। सकारात्मक सोचें और सदैव दूसरों का भला करने का प्रयास करें, क्योंकि यही जीवन का सबसे बड़ा धर्म है।
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