कोशिश करने वालों की हार नहीं होती – प्रेरणादायक बाल कहानी

यह कहानी राजू नामक एक छोटे बच्चे की है, जो कागज की नाव बनाकर तैराने की कोशिश करता है। बार-बार असफल होने के बावजूद वह हार नहीं मानता। माँ की सीख से प्रेरणा लेकर वह अंततः सफल होता है। यह प्रेरक कहानी बताती है कि सच्ची लगन और निरंतर प्रयास से कोई भी कठिनाई पार की जा सकती है।

यह कहानी किशनगंज गाँव में रहने वाले राजू नामक एक 6-7 साल के लड़के की है। एक दिन उसने गाँव के कुछ बच्चों को पानी में कागज की नाव बनाकर तैराते हुए देखा। उन बच्चों की कागज की नावें पानी में बड़े आराम से तैर रही थीं। बच्चे भी अपनी नाव को पानी में तैराकर आनंदित हो रहे थे। यह देखकर राजू के मन में भी इच्छा हुई कि वह भी कागज की नाव बनाकर उसे पानी में तैराए।

वह बड़े ध्यान से देख रहा था कि बच्चे किस प्रकार कागज की नाव बना रहे हैं। उनकी हर हरकत पर राजू की नजर थी। नाव बनाने की सारी विधि गौर से देखने के बाद, वह तेज़ी से अपने घर की ओर भागा। घर पहुँचकर उसने बाहर बह रहे पानी को एक टक देखा और फिर कागज की नाव बनाने की तैयारी में जुट गया।

राजू ने जब अपनी पहली नाव बनाई और उसे पानी में तैराने की कोशिश की तो नाव पानी में जाते ही डूब गई। उसने फिर से कोशिश की और एक और नाव बनाई। जब इस नाव को राजू ने पानी में तैराने की कोशिश की तो यह नाव भी डूब गई। इसी तरह उसने 3-4 बार कोशिश की, लेकिन हर बार उसकी नाव पानी में तैरने के बजाय डूब जाती थी।

स्वयं को लगातार असफल होता देख राजू हताश हो गया और दूर बैठकर रोने लगा। रोना सुनकर उसकी माँ बाहर आई। राजू को रोता देख उसकी माँ चिंतित हो उठी। वह भागकर राजू के पास गई और उसे शांत कराने की कोशिश करने लगी- “राजू, क्या हुआ बेटा? तुम क्यों रो रहे हो?”

राजू ने आँसू पोंछते हुए कहा- “माँ, देखो न, मैं कब से कागज की नाव बनाकर इस पानी में तैराने की कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन मेरी नाव तैरने के बजाय हर बार डूब जाती है। गाँव के बच्चों की नाव तो अच्छे से तैर रही थी, लेकिन मेरी नाव बार-बार क्यों डूब रही है, माँ?”

माँ मुस्कुराई और बोली- “बस, इतनी सी बात पर रो रहे हो! अरे बेटा, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। देखो, जब मैं भी कोई नई सब्जी बनाना सीखती हूँ, तो पहली बार में वह सब्जी अच्छी नहीं बन पाती, लेकिन बार-बार कोशिश करने के बाद, आखिरकार मैं वह सब्जी बनाना सीख ही जाती हूँ…

..अब सोचो, अगर मैं भी तुम्हारी तरह कोशिश करना छोड़कर ऐसे उदास होकर बैठ जाऊँ, तो क्या मैं कभी वह सब्जी बनाना सीख पाऊँगी? नहीं! ठीक मेरी ही तरह, अगर तुम भी परिणाम की चिंता किए बिना अपनी कोशिश जारी रखोगे, तो तुम्हारी नाव भी गाँव के उन लड़कों की नाव की तरह पानी में जरूर तैरेगी।”

माँ की यह बात राजू के मन में घर कर गई। उसने मन में ठान लिया कि अब वह हार नहीं मानेगा। राजू ने फिर से कागज की नाव बनाने की कोशिश शुरू कर दी। बार-बार उसकी नाव पानी में डूब रही थी, लेकिन इस बार उसने माँ की बात को ध्यान में रखते हुए अपनी कोशिशें जारी रखीं।

कई बार प्रयास करने के बाद, आखिरकार उसकी नाव पानी में तैरने लगी। अपनी नाव को तैरता देख राजू खुशी से झूम उठा। वह जोर-जोर से अपनी माँ को आवाज़ देने लगा- “माँ, देखो! मेरी नाव भी गाँव के उन लड़कों की नाव की तरह पानी में तैर रही है!”

माँ बाहर आई और देखा कि सच में राजू की नाव पानी में बड़े आराम से तैर रही थी। माँ ने उसे खुशी से गले लगा लिया और कहा- “देखा, राजू! मैंने कहा था न, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

✍️ यह रचना हमें
देवराज लोधी (इंदौर, मध्यप्रदेश)
द्वारा प्राप्त हुई है।
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