प्रेरणादायक कहानी: विनम्रता और सीख की यात्रा

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एक छोटे से गांव में एक प्रसिद्ध मूर्तिकार रहता था, जिसका नाम रामू था। रामू की मूर्तियां इतनी सुंदर और जीवंत होती थीं कि लोग दूर-दूर से उन्हें देखने और खरीदने आते थे। समय के साथ, रामू बूढ़ा हो चला था और उसने सोचा कि अब समय आ गया है कि वह अपनी कला अपने […]

एक छोटे से गांव में एक प्रसिद्ध मूर्तिकार रहता था, जिसका नाम रामू था। रामू की मूर्तियां इतनी सुंदर और जीवंत होती थीं कि लोग दूर-दूर से उन्हें देखने और खरीदने आते थे। समय के साथ, रामू बूढ़ा हो चला था और उसने सोचा कि अब समय आ गया है कि वह अपनी कला अपने बेटे शिवा को सिखा दे, ताकि शिवा भी गांव में मशहूर हो सके।

पिता की सीख और बेटे की यात्रा

रामू ने अपने बेटे शिवा से कहा, “बेटा, मैं चाहता हूं कि तुम मेरी इस कला को सीखो। इससे तुम भी गांव में नाम कमा सकोगे।” शिवा ने खुशी-खुशी अपने पिता की बात मान ली और अगले ही दिन से मूर्तियां बनाना सीखना शुरू कर दिया। रामू हमेशा शिवा के पास खड़े रहते और उसे समझाते कि वह कहाँ गलती कर रहा है और कैसे वह अपनी कला को निखार सकता है।

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कुछ समय बाद, शिवा भी अच्छी मूर्तियां बनाने लगा। धीरे-धीरे, उसके हाथों की कला में सुधार आता गया और गांव के लोग उसकी बनाई मूर्तियों को रामू की मूर्तियों से भी बेहतर मानने लगे। शिवा ये सब सुनकर बेहद खुश हुआ और उसके मन में गर्व की भावना घर करने लगी। उसे देख रामू भी अपने बेटे की सफलता से बहुत खुश था।

घमंड का परिणाम

परंतु, जैसे-जैसे समय बीतता गया, शिवा के मन में अहंकार ने घर कर लिया। एक दिन उसने अपने पिता से कहा, “पिताजी, अब मुझे आपकी सलाह की ज़रूरत नहीं। मेरी मूर्तियों की कीमत आपकी मूर्तियों से कहीं ज्यादा है।” यह सुनकर रामू ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप वहां से चले गए।

कुछ समय बाद, शिवा ने सोचा कि उसे अपनी मूर्तियों की कीमत और बढ़ा देनी चाहिए और खुद की एक नई दुकान खोलनी चाहिए। रामू ने उसे अपनी राह चुनने की स्वतंत्रता दी और कहा, “ठीक है बेटा, तुम अपनी दुकान खोल लो।”

शिवा ने अपनी नई दुकान खोल ली और अपनी मूर्तियों का दाम अपने पिता की मूर्तियों से ज्यादा रखा। कुछ समय तक लोग शिवा की मूर्तियों को खरीदते रहे, पर जल्द ही उन्होंने शिवा की मूर्तियों में रुचि खो दी और फिर से रामू की दुकान पर जाना शुरू कर दिया।

सीख और सुधार

शिवा ने अपनी मूर्तियों को बेहतर बनाने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। निराश और थककर, वह अपने पिता के पास गया और बोला, “पिताजी, ऐसा क्या है आपकी मूर्तियों में जो लोग आपके पास वापस आ गए हैं? मेरी मूर्तियों को तो अब कोई देखता भी नहीं।”

रामू ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, तुमने सीखना छोड़ दिया है। जब तुमने मेरी सलाह की ज़रूरत महसूस नहीं की, तब तुमने अपने विकास को रोक दिया। तुम्हारा घमंड तुम्हारी कला को आगे नहीं बढ़ने दे रहा था। तुमने यह समझा ही नहीं कि गलती कहाँ हो रही है।”

शिवा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने अपने पिता से माफी मांगी और उनसे फिर से सीखना शुरू किया कि एक सच्चा कलाकार कैसे बना जा सकता है।

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कहानी की सीख

सीख: जीवन में हमें हमेशा सीखते रहना चाहिए, चाहे वह गलतियों से हो या अनुभव से। कभी भी अपने आप पर या अपनी सफलता पर घमंड नहीं करना चाहिए। घमंड हमें वास्तविकता से दूर कर देता है और हमारी प्रगति में बाधा डालता है।

इस कहानी से हमें यह समझ में आता है कि सच्ची सफलता तब मिलती है जब हम निरंतर सीखते रहते हैं और विनम्र बने रहते हैं।


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