ईदगाह का नन्हा नायक
प्रेमचंद की ‘ईदगाह’ एक मार्मिक कहानी है जो सिखाती है कि सच्ची खुशी दूसरों की भलाई और प्यार में है।
गाँव की गलियों में आज एक अलग ही रौनक थी। चारों तरफ़ खुशियों का माहौल था क्योंकि आज ईद का दिन था। सबके चेहरे खुशी से दमक रहे थे, बच्चों की आँखों में तो जैसे सपने तैर रहे थे—नए कपड़े, मिठाइयाँ, खिलौने और सवारी। मगर इन्हीं खुशियों के बीच, एक छोटा सा लड़का हामिद, अपनी दादी अमीना के साथ अपने छोटे से घर में बैठा था। हामिद अभी चार साल का था और हाल ही में अपने माता-पिता को खो चुका था। उसकी दादी ने उसे समझाया था कि उसके पिता पैसे कमाने गए हैं और उसकी माँ अल्लाह के पास से उसके लिए उपहार लाने गई है। हामिद मासूम था, इसलिए उसने अपनी दादी की बात मान ली और अपने दिल में आशा और विश्वास के साथ जीता रहा।
हालाँकि अमीना के दिल में गहरा दर्द था, मगर वह अपने पोते के सामने कभी उसे ज़ाहिर नहीं करती थी। उसकी गरीबी, फटे-पुराने कपड़े, और कमज़ोर शरीर उसे हामिद के लिए चिंतित रखता था। लेकिन हामिद था कि हमेशा खुश रहता था, क्योंकि वह जानता था कि जो कुछ भी है, उसकी दादी उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेगी।
ईद की सुबह:
ईद की सुबह आई, सूरज की पहली किरणों के साथ। गाँव के सारे बच्चे अपने नए कपड़े पहनकर, खुशी-खुशी ईदगाह जाने की तैयारी कर रहे थे। हामिद के पास नए कपड़े तो नहीं थे, लेकिन उसने अपनी दादी का प्यार ही अपने लिए सबसे बड़ा तोहफ़ा माना। उसकी जेब में सिर्फ़ तीन छोटे से पैसे थे, मगर उसका दिल बहुत बड़ा था। दादी ने उसे थोड़ी सी ईदी दी थी, और हामिद ने उसे संभाल कर रखा था।
जैसे ही हामिद गाँव के अन्य बच्चों के साथ ईदगाह की ओर चला, उसके मन में कुछ सवाल उभरने लगे। क्या वह इन तीन पैसों से कुछ मीठा खा पाएगा? क्या वह भी मिट्टी के खिलौने खरीद पाएगा? मगर फिर उसने अपने दिल को समझाया, “मिठाई और खिलौने तो जल्दी ही खत्म हो जाएंगे, पर मैं कुछ ऐसा खरीदूंगा जिससे मेरी दादी को खुशी मिले।”
मेले की रौनक:
ईदगाह पहुँचते ही मेले का नज़ारा देखकर हामिद की आँखें चमक उठीं। रंग-बिरंगे खिलौने, मिठाइयाँ, और झूलों की लाइनें—यह सब किसी जादू की दुनिया से कम नहीं लग रहे थे। हामिद के दोस्त भी अपनी जेब से पैसे निकालकर तरह-तरह की चीज़ें खरीदने लगे—मिठाई, मिट्टी के खिलौने, और चकरी। हर किसी के हाथ में कुछ न कुछ था, सिवाय हामिद के।
उसके दोस्त उसे चिढ़ाने लगे, “हामिद, तुम्हारे पास तो सिर्फ़ तीन पैसे हैं। तुम क्या खरीदोगे?” हामिद ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “मैं कुछ ऐसा खरीदूंगा जिससे मेरी दादी खुश हो जाए।”
हामिद की सोच:
हामिद का दिल नाचने को हो रहा था, लेकिन उसकी नजर हमेशा कुछ ऐसा ढूँढ रही थी जो उसकी दादी के काम आ सके। वह मेले में घूमता रहा, खिलौनों और मिठाइयों को देखकर खुद को रोकता रहा। अचानक, उसकी नजर एक लोहार की दुकान पर पड़ी। वहाँ चिमटे रखे हुए थे। हामिद को तुरंत याद आया कि उसकी दादी जब रोटी सेंकती है, तो तवे से रोटियाँ उतारते समय उसकी उँगलियाँ जल जाती हैं। हामिद ने तुरंत फैसला कर लिया—वह तीन पैसों से एक चिमटा खरीद लेगा।
मेले से वापसी:
जैसे ही हामिद ने चिमटा खरीदा, उसके दोस्त खिलौनों के साथ लौटते हुए उसे चिढ़ाने लगे, “तुमने चिमटा खरीदा? इससे क्या खेलोगे? देखो, हमारे खिलौने कितने अच्छे हैं!” हामिद ने चतुराई से जवाब दिया, “चिमटा सिर्फ़ खिलौना नहीं, यह एक बहादुर योद्धा है। जब तुम्हारे मिट्टी के खिलौने टूट जाएंगे, मेरा चिमटा तब भी काम आएगा।”
धीरे-धीरे उसके दोस्त भी उसकी बात मानने लगे। वे समझ गए कि हामिद ने जो खरीदा, वह खिलौनों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण था।
घर वापसी:
जब हामिद घर पहुँचा, तो उसकी दादी ने उसे खाली हाथ देखा और पूछा, “तूने कुछ खाया-पीया नहीं? कुछ मीठा भी नहीं खरीदा?”
हामिद ने मासूमियत से अपनी दादी को चिमटा दिखाया और कहा, “दादी, देखो, मैंने तुम्हारे लिए चिमटा खरीदा है ताकि तुम्हारी उँगलियाँ अब तवे पर न जलें।”
अमीना पहले तो नाराज़ हो गई, “तूने मिठाई नहीं खरीदी? खेल-खिलौने नहीं लिए?” मगर जैसे ही हामिद ने चिमटे का असली मतलब समझाया, अमीना की आँखों में आँसू आ गए। वह अपने पोते को कसकर गले लगा कर रो पड़ी, “तू कितना समझदार है, बेटा। अल्लाह तुझे हमेशा खुश रखे।”
सीख:
हामिद ने हमें सिखाया कि प्यार और देखभाल के लिए उम्र या पैसा मायने नहीं रखता। सबसे बड़ी दौलत वह होती है जो दिल से आती है। सच्चा प्यार और समझदारी से भरा हुआ एक छोटा सा उपहार भी बहुत बड़ा बन सकता है।
इस कहानी से बच्चों को यह सीख मिलती है कि सच्ची खुशी दूसरों की मदद करने और उनकी भलाई के बारे में सोचने में है। जो लोग दूसरों के लिए सोचते हैं, वे सबसे खुश होते हैं।
Leave a Reply