अंगुलिमाल डाकू की परिवर्तन कहानी: गौतम बुद्ध का मार्गदर्शन

डाकू की जीवन परिवर्तन कहानी: गौतम बुद्ध का मार्गदर्शन

इस लेख में, हम एक ऐसे डाकू की कहानी के बारे में जानेंगे जिसने गौतम बुद्ध के दिखाए गए मार्ग को अपनाकर अपना जीवन पूर्णतः बदल लिया। एक अद्वितीय मार्गदर्शन कहानी।

बहुत समय पहले, मगध के राज्य में एक बड़ा ही डरावना डाकू रहता था, जिसका नाम अंगुलिमाल था। वह एक घने जंगल में निवास करता था और जो भी उसके क्षेत्र से गुजरता, उसे अंगुलिमाल न केवल लूटता बल्कि बेरहमी से उसकी जान भी ले लेता। उसकी क्रूरता इतनी थी कि वह मारे गए लोगों की अंगुलियाँ काट लेता और उनसे माला बनाकर पहनता। इस कारण से उसका नाम अंगुलिमाल पड़ गया। उसके नाम से ही आस-पास के गांवों में खौफ फैला हुआ था।

एक दिन, महात्मा गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ उसी इलाके में विहार करने निकले। एक गांव में रुक कर उन्होंने वहां के लोगों की चिंताओं को सुना, जो अंगुलिमाल के आतंक से भयभीत थे। बुद्ध ने तय किया कि वे उस खतरनाक डाकू से मिलेंगे, चाहे उनके शिष्य और गांव वाले कितना भी मना करें।

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बुद्ध ने जंगल की ओर कदम बढ़ाया। अंगुलिमाल ने जब उन्हें देखा, तो वह उन्हें रोकने के लिए दौड़ पड़ा। बुद्ध ने उसे देखा लेकिन बिना किसी भय के अपनी यात्रा जारी रखी। अंगुलिमाल ने बुद्ध से पूछा कि क्या उन्हें उससे डर नहीं लगता। बुद्ध ने बड़े शांत भाव से उत्तर दिया कि वे उससे क्यों डरेंगे।

बुद्ध के चेहरे पर डर का कोई चिन्ह नहीं था। उन्होंने शांति और दृढ़ता के साथ अंगुलिमाल से संवाद किया। अंगुलिमाल ने बुद्ध से पूछा कि क्या वे उससे नहीं डरते, जिस पर बुद्ध ने उत्तर दिया कि उन्हें उससे कोई भय नहीं है। इस पर अंगुलिमाल ने धमकी दी कि वह बुद्ध का सिर उनके धड़ से अलग कर सकता है, लेकिन बुद्ध ने फिर भी बिना डरे उत्तर दिया कि वे ऐसे कायर से नहीं डरते।

बुद्ध की इस शांति और दृढ़ता ने अंगुलिमाल को चकित कर दिया। वह समझ नहीं पा रहा था कि एक संन्यासी में इतनी ताकत कैसे हो सकती है। बुद्ध ने उसे एक सरल किंतु गहरी शिक्षा दी, उन्होंने अंगुलिमाल को पेड़ की पत्तियों को तोड़ने और फिर उन्हें वापस जोड़ने की चुनौती दी। जब अंगुलिमाल ने पत्तियां तोड़ना तो आसान पाया, लेकिन उन्हें वापस जोड़ना असंभव जान पड़ा, तब बुद्ध ने उसे समझाया कि असली ताकत नष्ट करने में नहीं बल्कि जोड़ने और संरक्षण में है।

इस अनोखी शिक्षा ने अंगुलिमाल को गहराई से प्रभावित किया। उसे अपने कृत्यों पर पछतावा हुआ, और उसने बुद्ध से शरण में रहने का अनुरोध किया। बुद्ध ने उसे अपने शिष्यत्व में स्वीकार किया, और अंगुलिमाल ने एक नया जीवन आरंभ किया, जिसमें उसने हिंसा का पथ छोड़कर शांति और दया का मार्ग अपनाया। उसने समझा कि वास्तविक शक्ति और साहस दूसरों की रक्षा में और टूटी हुई चीजों को जोड़ने में होती है, न कि उन्हें नष्ट करने में।

यह कहानी हमें शक्ति के असली अर्थ की समझ देती है और यह भी बताती है कि कैसे क्षमा, धैर्य, और समझदारी किसी भी व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह से बदल सकती है। यह बच्चों को यह शिक्षा देती है कि हमें हमेशा दयालु और मददगार होना चाहिए, और हमें हमेशा अपने कर्मों के प्रति जागरूक रहना चाहिए।

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