चतुर दरबारी – अकबर की बीरबल से पहली मुलाकात!

अकबर और बीरबल

अकबर और बीरबल की पहली मुलाकात की इस रोचक कहानी में जानिए, कैसे महेश दास ने अपनी बुद्धिमानी से शहंशाह अकबर को प्रभावित किया।

अकबर इतिहास के महानतम बादशाहों में से एक थे। वह न केवल एक बहादुर योद्धा थे, बल्कि बुद्धिमान और दूरदर्शी भी थे। परंतु, अगर अकबर में कोई कमजोरी थी, तो वह था उनका अहंकार।

अकबर सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु थे। एक दिन, रामायण पर चर्चा सुनने के बाद, उन्होंने घोषणा कर दी कि वे भगवान राम के अवतार हैं! यह सुनकर हिंदू पंडित दंग रह गए। अकबर एक महान राजा थे, लेकिन एक साधारण इंसान, और वह भी मुस्लिम होकर भगवान राम का अवतार कैसे हो सकते थे? बादशाह के इस भ्रम को दूर करना जरूरी था, पर सवाल था कैसे?

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इसी बीच महेश दास, जो एक तेज दिमाग वाला ब्राह्मण था, पंडितों की परेशानी के बारे में सुनता है। उसने कहा, “कल मुझे दरबार में साथ ले चलो, शायद मैं शहंशाह अकबर को यह समझा सकूं कि वे भगवान राम नहीं हैं?” पंडितों ने उसकी बात का मजाक उड़ाया, लेकिन महेश दास अपने विचार पर अडिग रहा।

अगले दिन दरबार में, महेश दास ने बादशाह के सामने झुककर प्रणाम किया। अकबर ने पूछा, “यह युवा कौन है, जिसने अभी तक अपनी दाढ़ी भी नहीं उगाई, और इतने ज्ञानी लोगों के बीच बैठा है?”

महेश दास ने बड़ी बुद्धिमानी से उत्तर दिया, “अगर शाह आलम (अकबर) किसी की बुद्धि उसकी दाढ़ी के बालों से मापते हैं, तो मैं आपके सामने एक ऐसा जीव लाऊंगा, जो हम सबसे अधिक ज्ञानी है।”

यह कहकर महेश दास कुछ देर के लिए दरबार से बाहर गया और कुछ ही पलों बाद एक बकरी को लेकर वापस आया, जिसकी लंबी दाढ़ी थी। पंडित घबरा गए कि अकबर इस चतुराई पर नाराज़ होंगे। लेकिन अकबर मुस्कुरा उठे।

“तुम छोटे हो लेकिन बहुत चतुर हो,” अकबर ने कहा।

महेश दास ने हंसते हुए कहा, “अगर हुजूर चाहते हैं, तो मैं ऊँट या हाथी भी ला सकता हूँ, जिनकी दाढ़ी और बड़ी है!” अब पंडितों का दिल जोर से धड़कने लगा कि शायद महेश दास ने इस बार हद पार कर दी। लेकिन अकबर ठहाका मारकर हंस पड़े।

“ध्यान रखना, मेरे बच्चे!” अकबर ने हंसते हुए कहा, “यह तीखी जुबान तुम्हें परेशानी में डाल सकती है।”

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अकबर ने महेश दास के पास रखे पानी से भरे घड़े और पत्थरों के ढेर की ओर इशारा करते हुए पूछा, “यह सब किसलिए है?”

महेश दास ने अकबर के पास जाकर कहा, “जहांपनाह, मेरी विनम्र प्रार्थना है, आप कृपया इन पत्थरों को इस घड़े में डालें ताकि वे एक के ऊपर एक टिक जाएं।”

बादशाह ने उसे अचरज भरी नज़रों से देखा, फिर घड़ा और पत्थर अपने हाथ में ले लिए और पत्थर घड़े में डालने लगे। उनमें से केवल दो ही पत्थर एक के ऊपर टिके, बाकी इधर-उधर बिखर गए।

“यह तो काफी मुश्किल था,” अकबर ने कहा।

महेश दास ने मुस्कुराते हुए कहा, “आलमपनाह, भगवान राम ने समुद्र पर पुल इसी प्रकार पत्थरों से बनवाया था, जिससे भारत से लंका तक पहुंचा जा सके।”

अकबर थोड़े नाराज़ और प्रभावित होते हुए बोले, “तो तुम यह साबित करना चाहते हो कि भगवान राम मुझसे महान थे?” उन्होंने पंडितों की ओर देखा और कहा, “यह युवा लड़का तुम सब पंडितों से अधिक चतुर है! इसे दरबार में शामिल करो। मुझे चतुर दिमागों का साथ पसंद है।”

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फिर अकबर ने महेश दास की ओर देखकर कहा, “मेरे युवा मित्र, तुम क्या कहना चाहते हो?”

महेश दास अपनी किस्मत पर यकीन नहीं कर पा रहा था। उसने झुककर कहा, “जहांपनाह, मैं दिल और जान से आपकी सेवा करूंगा।”

और इसी प्रकार, महेश दास दरबार में ‘बीरबल‘ के नाम से मशहूर हो गए। यही थी उनकी अकबर से पहली मुलाकात!

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