बुरे सोच का बुरा नतीजा
बुरे विचार खुद के लिए ही नुकसानदायक हो सकते हैं। यह कहानी सिखाती है कि नेकदिल और सकारात्मक सोच से जीवन में कैसे आगे बढ़ सकते हैं।
एक गाँव में दो दोस्त रहते थे। एक सब्जी बेचने का काम करता था और दूसरा मिट्टी के बर्तन बनाने वाला कुम्हार था। सब्जी वाला बहुत नेकदिल और मददगार स्वभाव का व्यक्ति था, जबकि कुम्हार स्वभाव से ईर्ष्यालु और नकारात्मक सोच वाला था। जब कभी सब्जी वाले को ज्यादा मुनाफा होता, तो कुम्हार के मन में जलन पैदा हो जाती।
एक दिन दोनों ने तय किया कि वे मिलकर एक ऊँट खरीदेंगे ताकि उस पर बैठकर अपना-अपना सामान शहर की मंडी में बेच सकें। अगले दिन दोनों ने एक ऊँट खरीदा। सब्जी वाला अपनी सब्जियों की टोकरी लेकर ऊँट के आगे बैठ गया, और कुम्हार ने अपने मिट्टी के बर्तनों को ऊँट की पीठ पर एक तरफ लटकाकर खुद पीछे बैठ गया।
ऊँट धीरे-धीरे शहर की ओर चल पड़ा। आधे रास्ते में ऊँट को भूख लगी और सब्जियों की खुशबू से उसकी भूख और बढ़ गई। उसने गर्दन घुमाई और सब्जी की टोकरी में से सब्जियां खाने लगा। सब्जी वाला अपना नुकसान देखकर भी कुछ नहीं बोला, जबकि कुम्हार यह देखकर खुश हो रहा था कि ऊँट सब्जियां खा रहा है। वह मन ही मन सोच रहा था कि अब सब्जी वाले का काफी नुकसान हो जाएगा और उसकी कमाई ज्यादा होगी।
शहर पहुंचने पर ऊँट को रोक दिया गया। जैसे ही दोनों दोस्त ऊँट से उतरे, ऊँट ने करवट बदली और कुम्हार के बर्तन जो ऊँट की पीठ के एक तरफ लटके हुए थे, सबके सब टूट गए। कुम्हार के सारे बर्तन चकनाचूर हो गए। उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। दूसरी तरफ सब्जी वाले की टोकरी में अब भी काफी सब्जियां बची हुई थीं।
सब्जी वाले ने अपनी बची हुई सब्जियों को अच्छे दामों में बेचा और दोनों ऊँट पर सवार होकर वापस गाँव लौट आए। रास्ते में सब्जी वाले ने कुम्हार को सांत्वना देते हुए अपनी कमाई का आधा हिस्सा उसे दे दिया और कहा, “दोस्त, उदास मत हो। कल हम तुम्हारे बर्तनों को अच्छे से संभालकर मंडी में बेचेंगे। तुम्हें भी अच्छा मुनाफा मिलेगा।”
सब्जी वाले की नेकदिली देखकर कुम्हार को अपनी सोच पर बहुत पछतावा हुआ। उसने ठान लिया कि अब वह कभी किसी के लिए बुरा नहीं सोचेगा।
शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि दूसरों के लिए बुरा सोचने का परिणाम अक्सर हमारे खुद के लिए नुकसानदेह होता है। इसलिए हमें हमेशा सकारात्मक और नेक सोच रखनी चाहिए।
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