अम्मा का दर्द – एक दिल छू लेने वाली कहानी

Story for Kids

जानें कैसे अम्मा अपने बेटे और पोते के साथ बिताए पलों में अपने दर्द को छुपाती हैं। पढ़ें इस दिल छू लेने वाली कहानी में।

कुशल आज बहुत खुश था। क्योंकि कल से उसकी छुट्टियां लग रहीं थीं और उसके पापा ने पहले ही कह दिया था। कि छुट्टियां में हम अम्मा से मिलने जायेंगे।

बुलंदशहर के छोटे से कस्बे से निकल कर दिल्ली के फ्लेट का सफर रवि जी ने बहुत मुश्किल से तय किया था। दिल्ली की आई टी कंपनी में काम करते करते कब वे अपने घर से दूर हो गये पता ही नहीं चला। रंजना से शादी फिर कुशल का होना। इस सबकी जिम्मेदारी में वे अपने माता पिता से दूर हो गये थे।

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रवि जी की मां जिसे पूरा कस्बा अम्मा के नाम से जानता था। इसलिये रवि भी मां को अम्मा कहते थे। पापा के मरने के बाद रवि ने बहुत कोशिश की कि अम्मा को दिल्ली ले आयें। लेकिन अम्मा केवल एक बार दिल्ली आई थीं। दो दिन बाद ही वो बोलीं – ‘‘पता नहीं तुम लोग कैसे इस डिब्बे में रह लेते हो। बेटा मुझे तो तू गांव ही छोड़ आ। जब तक चार लोगों के सुख-दुःख में हिस्सेदारी न हो कैसा जीवन। यहां तो कोई एक-दूसरे से बात तक नहीं करता।’’

रवि ने बहुत समझाने की कोशिश की – ‘‘अम्मा वहां तुम्हारी देखभाल कौन करेगा ?’’

यह सुनकर अम्मा ने कहा – ‘‘पूरा मौहल्ला खड़ा हो जाता है। मेरी खांसी सुनकर। मौहल्ले की सारी बहुंए अपनी सास से ज्यादा मेरा ध्यान रखती हैं।’’

अम्मा वापस अपने घर आ गईं। इस बात से गुस्सा होकर रवि ने कई महीनों तक अम्मा को फोन भी नहीं किया। अम्मा फोन पर हाल चाल पूछती तो बस हां हूं करके बात टाल देते थे।

आज कई महीनों बाद रवि, रंजना और कुशल को लेकर जा रहे थे अम्मा से मिलने। दो दिन रुक कर, रंजना और कुशल को छोड़ कर आने का प्लान था।

कुशल सुबह जल्दी ही अपने आप उठ गया। रवि और रंजना यह देख कर हैरान थे कि स्कूल के लिये तो कभी उठता नहीं था। लेकिन अम्मा से मिलने के लिये सुबह ही उठ कर तैयार हो गया।

कुशल के कुछ खिलौने, कपड़े और जरूरी सामान रंजना ने पैक कर दिया था।

रवि, रंजना और कुशल तीनों अपनी गाड़ी से घर पहुंच गये। अम्मा को सरप्राईज देना चाहते थे, क्योंकि अम्मा भी ज्यादा बात नहीं करती थीं। रवि के व्यवहार से गुस्सा थीं।

कार जैसे ही घर के पास पहुंची कुशल झट से उतर कर भागा और घर में घुस गया। रंजना सामान निकाल रहीं थीं और रवि ने गाड़ी पार्क कर रहे थे।

कुशल, अम्माजी अम्माजी चिल्लाता हुआ घर में गया। अम्मा जी घर के बड़े से आंगन में बैठ कर मसाला पीस रहीं थीं। कुशल को देख कर बोली – ‘‘मेरा राजा बेटा आज कैसे अम्मा की याद आ गई। रुक अभी हाथ धोकर आती हूं।’’

यह कहकर वे सिल से समेटने लगीं। फिर सिल, बट्टे को धोने लगीं। तभी रवि और रंजना आंगन में आ चुके थे।

रंजना ने अम्मा के पैर छुए। अम्मा ने बहु को गले से लगा लिया। रवि भी आगे बढ़े अम्मा के पैर छुने तो वो बोली – ‘‘जा मैं तेरे से नहीं बोलती, बड़ी नाक उंची करके घूम रहा है।’’

रवि ने कान पकड़ते हुए कहा – ‘‘छोड़ो अम्मा अब माफ भी कर दो। कितना मन था तुम्हारे साथ रहने का।’’

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अम्मा ने कहा – ‘‘अरे उस डिब्बे में तो मैं घुट के मर जाती।’’

यह देख कर कुशल बोला – ‘‘अम्मा जी पापा को मुर्गा बनाओ हमारे स्कूल में पनिश्मेंट में मुर्गा बनाते हैं।’’

यह सुनकर सभी हसने लगे। रवि बोले – ‘‘रुक अभी तुझे मुर्गा बनाता हूं।’’

यह सुनकर अम्मा ने कुशल को गोद में उठा लिया – ‘‘खबरदार जो मेरे पोते को कुछ कहा।’’

रंजना रसोई में सबके लिये चाय बनाने चली गई। अम्मा जी कुशल के साथ बातें करने लगीं। रवि आंगन में पड़ी चारपाई पर लेट गये।

इसी तरह मिलते जुलते दो दिन बीत गये। रवि वापस दिल्ली आ गये। आठ दिन के लिये रंजना और कुशल को अम्मा जी के पास छोड़ दिया।

अम्मा जी शाम को कुशल को लेकर निकल जाती पूरे मौहल्लें में हर छोटा बड़ा उन्हें झुक कर प्रणाम करता, बहुएं पैर छूतीं। अम्मा जी पूरे मौहल्ले का हाल-चाल पूछती।

यही रोज का काम होता था। घर पर भी सुबह से शाम तक कोई न कोई अपनी परेशानी लेकर अम्मा जी के पास आता रहता था। अम्मा जी हर किसी की बातें सुनकर उसे सुझाव देती थीं। किसी किसी को डाट भी देती थीं। लेकिन कोई उनकी बात का बुरा नहीं मानता था। हस कर सब उनकी डाट खा लेेते थे, जानते थे उनकी डाट में कितना प्यार छुपा हुआ है।

एक दिन कुशल ने अम्मा जी से पूछा – ‘‘अम्मा यहां कितने मेहमान आते हैं। हमारे दिल्ली में तो कोई नहीं आता।’’

अम्मा जी बोलीं – ‘‘तेरा बाप तो पैसे के पीछे भाग रहा है। यहां सब कम कमाते हैं उसमें खुश रहते हैं। एक दूसरे के सुख-दुःख में खड़े रहते हैं।’’

कुशल बोला – ‘‘अम्मा क्या हम हमेशा यहां नहीं रह सकते?’’

यह सुनकर अम्मा के चेहरे पर एक उदास सी छा गई। फिर वो बोलीं – ‘‘बेटा ये घर तुम्हारा ही है। लेकिन तेरे बाप को कौन समझाये कल मैं मर गई तो वो तो इसे भी बेच देगा।’’

यह सुनकर रंजना ने कहा – ‘‘अरे अम्मा जी कैसी बात करती हों अभी तो आपको कुशल के लिये बहु भी लानी है।’’

कुशल बोला – ‘‘अम्मा जी बताओ न कब लाओंगी मेरे लिये बहु?

अम्मा जी और रंजना दोंनो हस पड़े फिर अम्मा जी ने कहा – ‘‘चल शाम को ही तेरी बहु लाती हूं। नहीं तो तू भी अपने बाप की तरह शहर में कोई ढूंढ लेगा।’’

यह सुनकर कुशल बहुत खुश हुआ चलो शाम को बहु तो मिल जायेगी। न शादी का मतलब पता, न बहु का बस बहु चाहिये थी।

दस दिन बाद रवि दोंनो को लेने के लिये आये। अम्मा जी के चेहरे पर उदासी छा गई थी। अम्मा जी बोली – ‘‘अब कब आयेगा?’’

रवि ने कहा – ‘‘अम्मा छुट्टियों में आते रहेंगे।’’

यह सुनकर अम्मा की आंखों नम हो गईं बोली -‘‘मेरे छुट्टी पर जाने से पहले आ जाना।’’

यह सुनकर रवि बोले – ‘‘अम्मा ऐसी बातें क्यों करती हों?’’

उसके बाद तीनों वापस चले आये। अगले दिन से सब अपने काम में व्यस्त हो गये।

करीब तीन महीने बाद एक दिन रवि ने कुशल को रात को जगाया – ‘‘बेटा जल्दी से तैयार हो जा अम्मा जी के पास चलना है।’’

कुशल को कुछ समझ नहीं आ रहा था, न छुट्टी है न कोई त्यौहार फिर अचानक अम्मा के पास कैसे जा रहे हैं।

रवि, रंजना और कुशल तीनों घर पहुंच जाते हैं। गली के बाहर से ही भीड़ लगी थी।

कुशल ने देखा आंगन में अम्मा जी चादर ओढ़े लेटी हैं पास में दीपक जल रहा है। रवि और रंजना दोंनो रो रहे थे। कुशल अब समझ चुका था कि अम्मा जी नहीं रहीं। रवि की गोद में बैठा वह एकटक अम्मा जी को देख रहा था। फिर वह उठा और अम्मा जी के पास बैठ कर कहने लगा – ‘‘अम्मा जी चलो न मेरे लिये बहु देखने।’’

यह सुनकर रंजना जोर जोर से रोने लगी। रवि ने कुशल को उठा कर गोदी में बिठाया।

देर रात तक कुशल अम्मा जी को निहारता रहा। सुबह जब उसकी आंख खुली तो वह घर के एक कमरे में था। वह उठ कर भागता हुआ बाहर आया। अम्मा जी वहां नहीं थीं। कुछ औरतों के साथ रंजना बैठी रो रही थीं।

कुशल ने रंजना को झकझोरते हुए कहा – ‘‘अम्मा जी कहां चली गईं? कौन ले गया उन्हें?

रंजना ने कुशल को संभालते हुए कहा – ‘‘बेटा वो भगवान के घर चली गईं।’’

अंतिम संस्कार करके जब रवि वापस आये तो कुशल उनसे लिपट कर पूछने लगा – ‘‘अम्मा जी को वापस ले आओ पापा।’’

रवि ने कुशल को गोद में लेकर बहुत प्यार से समझाया कि अम्मा जी भगवान के पास चली गईं हैं।

तेरहवीं के बाद जब शहर जाने के लिये सब गाड़ी में बैठ गये – रवि ने घर को ताला लगा दिया। गाड़ी में बैठते ही कुशल ने कहा – ‘‘पापा अम्मा जी कह रहीं थीं मेरे मरने के बाद तुम ये मकान बेच दोगे। क्या ये सच है?’’

रवि ने कुशल को गले से लगा लिया – ‘‘नहीं बेटा हम ये मकान कभी नहीं बेचेंगे। बल्कि वहां से सब बेच कर यहां आ जायेंगे। काश मैं अम्मा का कहना मान कर उनके साथ रहता, तो अंतिम समय में अम्मा के पास होता।’’


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