अंबेडकर जयंती: समानता और साहस की कहानी

Ambedkar_Jayantii

इस अंबेडकर जयंती पर पढ़ें एक खास प्रेरणादायक कहानी जो बच्चों को समानता, शिक्षा और साहस के मूल्य सिखाती है। जानिए डॉ. अंबेडकर की प्रेरणा।

गर्मियों की एक सुनहरी सुबह थी। स्कूल का आंगन बच्चों की हंसी और चहल-पहल से भर गया था। आज कक्षा में कुछ खास होने वाला था। सीमा मैडम ने सुबह की प्रार्थना के बाद मुस्कुराते हुए कहा,
“बच्चो! आज हम एक ऐसे महापुरुष की कहानी सुनेंगे, जिन्होंने हमें समानता और सम्मान से जीना सिखाया।”

बच्चे उत्साह से चुपचाप बैठ गए। सीमा मैडम ने कहानी शुरू की —

“बहुत साल पहले, 14 अप्रैल 1891 को एक छोटे से गाँव में एक प्यारा सा बच्चा जन्मा, जिसका नाम था भीमराव। वह बहुत होशियार और मेहनती था, लेकिन उस समय समाज में भेदभाव बहुत था। भीमराव जब स्कूल जाते, तो उन्हें अलग बैठाया जाता, पानी तक नहीं पीने दिया जाता था।”

छोटे अंशु ने उदास होकर पूछा, “मैडम, फिर उन्होंने क्या किया?”

सीमा मैडम ने प्यार से कहा, “भीमराव ने हार नहीं मानी। उन्होंने किताबों को अपना दोस्त बनाया और खूब पढ़ाई की। वह विदेश गए और वहाँ से कानून की पढ़ाई पूरी करके लौटे। लेकिन उन्होंने केवल अपने लिए नहीं, हम सबके लिए सोचा।”

मीना बोली, “क्या उन्होंने कुछ ऐसा किया जिससे सबको बराबरी का हक मिले?”

“बिलकुल!” मैडम ने गर्व से कहा, “डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारत का संविधान बनाया। उसमें लिखा कि हर इंसान बराबर है। अब कोई किसी से छोटा-बड़ा नहीं होता। सभी को पढ़ने, सोचने, खेलने और अपने सपने पूरे करने का हक है।”

अब तक सब बच्चे ध्यान से सुन रहे थे। रोहन ने कहा, “तो अंबेडकर जयंती हम इसलिए मनाते हैं ताकि उनके अच्छे कामों को याद किया जा सके?”

“हां बेटा,” मैडम ने सिर हिलाया, “यह दिन हमें सिखाता है कि हमें किसी के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए, सबको प्यार और सम्मान देना चाहिए।”

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क्लास के सभी बच्चों ने डॉ. अंबेडकर की तस्वीर के सामने मोमबत्तियाँ जलाईं और एक सुर में बोले,
“हम सब बराबर हैं – न कोई छोटा, न कोई बड़ा।”

उस दिन बच्चों ने एक वादा किया —
“हम हमेशा सबके साथ प्यार से पेश आएंगे, और कभी किसी को नीचा नहीं दिखाएंगे।”

कहानी का संदेश:

डॉ. अंबेडकर की कहानी हमें सिखाती है कि चाहे रास्ता कितना भी कठिन हो, अगर हमारे पास साहस, मेहनत और प्यार हो, तो हम समाज को बदल सकते हैं।


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