अकबर-बीरबल और छह मूर्खों की मजेदार खोज
अकबर ने बीरबल को छह मूर्ख ढूंढने का काम सौंपा। पढ़िए कैसे बीरबल ने चार मूर्खों को ढूंढा और पाँचवां और छठवां मूर्ख कौन निकला।
बादशाह अकबर थक चुके थे। उन्होंने कई घंटों तक विद्वानों और विभिन्न धर्मों के नेताओं से बातचीत की थी।
“मेरा सिर भारी हो गया है, बीरबल,” उन्होंने विद्वानों के चले जाने के बाद कहा। “मैं इसे हल्का करना चाहता हूँ।”
“कुछ दिनों की सवारी और शिकार से आपकी ताजगी लौट आएगी, जहाँपनाह,” बीरबल ने कहा।
“बिलकुल,” अकबर बोले। लेकिन क्यों न इस बार कुछ नया किया जाए? क्या तुम जानते हो कि एक सम्राट के रूप में मैं केवल समझदार और काबिल लोगों से ही बात करता हूँ? क्यों न इस बार कुछ मूर्खों से मिल लिया जाए!
बीरबल, शहर के सबसे बड़े छह मूर्खों को ढूंढकर मेरे सामने पेश करो। बहुत समय हो गया है, हँसने का मौका नहीं मिला।
बीरबल ने मुस्कान छुपाते हुए कहा, “जी हुजूर, मूर्खों की कभी कमी नहीं होती।”
लेकिन बीरबल को जल्दी ही एहसास हुआ कि वो गलत थे। जो भी उन्हें मिला, वह इतना मूर्ख नहीं था कि उसे बादशाह के सामने पेश किया जा सके। पाँच दिन बीत गए और छठवें दिन की सुबह आ गई। फिर से बीरबल मूर्खों की खोज में निकल पड़े। असली मूर्ख मिलना वाकई कठिन साबित हो रहा था, जिससे उनकी चिंता बढ़ती जा रही थी।
बीरबल सड़क किनारे झाड़ी से एक जंगली फूल तोड़ ही रहे थे, तभी एक आदमी उल्टा दौड़ता हुआ आया और बीरबल से टकरा गया।
“मुझे माफ कर दीजिए, हुजूर,” आदमी ने कहा, “मैंने आपको नहीं देखा। मैं पास की मस्जिद का मोअज्ज़िन हूँ, और नमाज़ के लिए लोगों को बुलाता हूँ।”
“लेकिन तुम उल्टा क्यों दौड़ रहे हो?” बीरबल ने पूछा।
“मैं अपनी आवाज़ के साथ दौड़ रहा हूँ, हुजूर,” उसने ईमानदारी से कहा। “मैं देखना चाहता हूँ कि मेरी आवाज़ कितनी दूर तक जाती है।”
बीरबल को ख़ुशी हुई, आखिरकार उन्हें पहला मूर्ख मिल गया! उन्होंने कहा, “कल दरबार में आना। बादशाह तुमसे मिलकर खुश होंगे।”
आगे चलते हुए बीरबल ने देखा कि एक आदमी गधे पर सवार है और लकड़ी का गठ्ठा सिर के ऊपर उठाए हुए है।
“तुम्हारे हाथ थक नहीं जाते?” बीरबल ने पूछा। “क्यों न तुम लकड़ी के बंडल को गधे की पीठ पर रख लो?”
“ग़रीब गधा पहले से ही मेरे वजन से दबा हुआ है, हुजूर,” उसने कहा। “मैं उसका बोझ और नहीं बढ़ा सकता।”
बीरबल मुस्कराए, उन्हें दूसरा मूर्ख भी मिल गया! उन्होंने कहा, “कल दरबार में आना। बादशाह को एक दयालु आत्मा से मिलकर खुशी होगी।”
दोपहर की चिलचिलाती धूप में बीरबल ने एक खेत के पास कुएं का ठंडा पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई। वहाँ उन्होंने देखा कि एक आदमी पूरी ताकत से खेत खोद रहा था।
बीरबल ने पूछा, “क्या ढूंढ रहे हो?”
“मैंने आठ महीने पहले यहाँ सोने के सिक्कों की थैली गाड़ दी थी, हुजूर,” उसने पसीना पोंछते हुए कहा। “अब मैं उसे निकाल रहा हूँ, लेकिन मिल नहीं रही।”
“क्या तुमने जगह को चिन्हित किया था?” बीरबल ने पूछा।
“मैं कोई मूर्ख नहीं हूँ, हुजूर,” उसने नाराजगी से कहा। “जब मैंने थैली गाड़ी थी, तब आसमान में हाथी के आकार का काला बादल था। मैंने थैली उसके नीचे गाड़ी थी। अब बादल चला गया है, लेकिन मैं थैली निकालकर ही रहूँगा।”
बीरबल ने मन ही मन हँसते हुए कहा, “कल दरबार में आना। बादशाह को मेहनती लोगों से मिलना बहुत पसंद है।”
रात हो चुकी थी और बीरबल को अभी भी तीन ही मूर्ख मिले थे। तभी उन्होंने चाँदनी में एक आदमी को ज़मीन पर झुके हुए कुछ ढूँढते देखा।
“क्या खो गया है?” बीरबल ने पूछा।
“हुजूर, मेरी अंगूठी गिर गई है,” आदमी ने कहा। “मैंने उसे उस पेड़ के नीचे गिराया था।”
बीरबल हैरान हुए। “अगर अंगूठी वहाँ गिरी थी, तो यहाँ क्यों ढूंढ रहे हो?”
“हुजूर, यहाँ रोशनी है,” उसने मासूमियत से कहा। “वहाँ अंधेरा है।”
बीरबल मुस्कराए, उन्हें चौथा मूर्ख भी मिल गया।
अगले दिन बीरबल चारों मूर्खों को दरबार में लाए और उनकी कहानियाँ सुनाईं। सभी को ईनाम देकर विदा कर दिया गया।
बादशाह अकबर ने मुस्कुराते हुए कहा, “ये चार तो सही में हमारे राज्य के सबसे बड़े मूर्ख हैं। लेकिन मैंने तो छह की मांग की थी?”
बीरबल ने गंभीरता से कहा, “पाँचवां मूर्ख मैं हूँ, जो इतनी मेहनत से इन्हें ढूंढ रहा था।”
अकबर ने हंसते हुए कहा, “और छठवां?”
“छठवां मूर्ख आप हैं, जहाँपनाह,” बीरबल ने सिर झुका लिया।
दरबार में सन्नाटा छा गया। लेकिन अकबर हँस पड़े और बोले, “सचमुच, यह मूर्खता बहुत मनोरंजक रही!”
Leave a Reply