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आलस की कीमत: एक प्रेरणादायक कहानी

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दिन के बारह बज रहे थे। लेकिन सोहन अभी भी सो रहा था। उसकी मां सुमित्रा ने आवाज दी। सुमित्रा: उठ जा बेटा देख सूरज सर पर चढ़ आया है कब तक सोता रहेगा। लेकिन सोहन पर कोई असर नहीं हुआ वह चादर से मुंह ढक कर दुबारा सो गया। कुछ देर बाद उसे खाने की […]

दिन के बारह बज रहे थे। लेकिन सोहन अभी भी सो रहा था। उसकी मां सुमित्रा ने आवाज दी।

सुमित्रा: उठ जा बेटा देख सूरज सर पर चढ़ आया है कब तक सोता रहेगा।

लेकिन सोहन पर कोई असर नहीं हुआ वह चादर से मुंह ढक कर दुबारा सो गया।

कुछ देर बाद उसे खाने की खुशबू आने लगी। दाल में तड़का लगते ही। उसे जोर से भूख लगने लगी। सोहन उठा और सीधा मां के पास रसोई में पहुंच गया।

सोहन: मां क्या बनाया है?

सुमित्रा: पहले जाकर नहा। फिर आना रसोई में। दाल चावल बनाये हैं।

दाल चावल सोहन को बहुत पसंद थे। वह फटाफट आंगन में गया और हैण्डपंप से बाल्टी भरने लगा। इसी बीच उसे याद आया कि उसने दांत तो मांजे ही नहीं। उसने फटाफट मंजन लेकर दांतों को रगड़ लिया और मगा साबुन लेकर बैठ गया नहाने। जल्दी से नहा कर कपड़े पहन कर रसोई में पहुंच गया।

तब तक खाना तैयार हो चुका था। मां ने खाना परोस दिया। खाना बहुत ही स्वादिष्ट बना था। सोहन ने भरपेट खाना खाया। वह खाना खाकर उठा तो मां ने टोक दिया –

सुमित्रा: अब कहां चल दिया?

सोहन: मां लगता है खाना कुछ ज्यादा ही खा लिया बहुत तेज नींद आ रही है मैं तो सोने जा रहा हूं।

सुमित्रा: हे भगवान अभी एक घंटे पहले ही तो सोकर उठा है। तुझे बस सारा दिन यही काम है, उठो, खाओ और सो जाओ। तुझे पता है तेरे पिता खेत में कितनी मेहनत करते हैं तब हमें दो वक्त की रोटी मिलती है। कुछ नहीं तो जाकर उनकी मदद ही कर दिया कर। उनके लिये खाना लेजा मैं अभी तैयार कर रही हूं।

सोहन पर तो जैसे दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा।

सोहन: मां तुम्हें पता है इतनी धूप में पहले एक बार मैं खाना देने गया था। आकर कितना बीमार पड़ गया था। तुम ही चली जाना मैं तो सोने जा रहा हूं।

सुमित्रा को बहुत गुस्सा आया। इससे पहले वह कुछ कहती सोहन तेजी से अपने कमरे में जाकर सो गया।

सुमित्रा खाना लेकर खेत पर पहुंची। कबीरदास बहुत मेहनत से खेत जोत रहे थे।

सुमित्रा: सुनो जी पहले खाना खा लेते।

कबीरदास: अरे तुम इतनी धूप में क्यों परेशान होती हों सोहन के हाथ से खाना भेज देतीं।

सुमित्रा: हमारे तो भाग्य ही फूट गये हैं। ऐसा आलसी बेटा मिला है। बस खाता है और सो जाता है। भगवान जाने इस लड़के का क्या होगा?

कबीरदास: चिन्ता मत करो एक दिन सब ठीक हो जायेगा।

सोहन के माता पिता सोहन की आदत से बहुत परेशान थे। वह कोई भी काम नहीं करता था। बस सारा दिन सारी रात सोता रहता था।

एक दिन सोहन के पिता ने कहा –

कबीरदास: बेटा मैं खाद और यूरिया लेने शहर जा रहा हूं। दो दिन लग जायेंगे। फसल तैयार होने वाली है तू सुबह खेत पर चले जाना और सारा दिन वहीं रहना शाम को खाना खाकर रात को वहीं सोने चले जाना कहीं कोई जानवर खेत में न घुस जाये या कोई और हमारी फसल को नुकसान न पहुंचा दे।

सोहन: पिताजी मुझसे ये सब नहीं हो पायेगा। आप मां को बोल दीजिये।

कबीरदास: नालायक खेत की देखभाल आदमियों का काम होता है। अगर मुझे पता लगा तू खेत पर नहीं गया। या फसल को नुकसान हो गया तो तेरी खैर नहीं।

सोहन डर गया। वह पिता के जाने के बाद मां से बोला –

सोहन: मां सुबह जगा देना नहीं तो पता नहीं पिताजी क्या करेंगे।

सुमित्रा मोहन को सुबह चार बजे जगा देती है।

सोहन हाथ में फावड़ा लेकर खेत में पहुंच जाता है। वहां जाकर देखता है चारों ओर ठंडी हवा चल रही थी। वह एक पेड़ के नीचे बैठ जाता है। तभी उसे हल्की हल्की रोशनी नजर आती है। पूरा खेत लाल रोशनी से भर जाता है। सोहन ने यह सब पहली बार देखा था। वह आश्चर्य से सब देखता रहा कुछ ही देर में सूरज उगने लगा। यह देख कर सोहन को बहुत आश्चर्य हुआ।

कुछ ही देर में सभी गांव वाले खेत में काम करने आ गये। सब अपने अपने खेत पर काम कर रहे थे। सोहन पेड़ के नीचे बैठा था। तभी उसके पास के खेत से माधो काका आये।

माधो काका: सोहन मेरे खेत में पानी लग गया अब तू अपने खेत में पानी काट ले।

सोहन: काका मुझे तो कुछ पता नहीं ये सब तो पिताजी ने कभी नहीं बताया।

माधो काका: बेटा कभी पिता के साथ खेत पर आया है तो तुझे पता होगा।

माधो काका ने अपने बेटे को बुला कर पानी सोहन के खेत की ओर कर दिया।

माधो काका: जब पूरा खेत भर जाये तो हमे बता देना।

सोहन बैठ कर देखता रहा। लेकिन सुबह जल्दी उठने के कारण उसे नींद आ गई। खेत में पानी बहुत ज्यादा भर गया।

तभी माधो काका दौड़ते हुए आये।

माधो काका: नालायक यहां सोने आया था। अपने पिता की सारी मेहनत बर्बाद कर दी सारी फसल नष्ट हो गई।

सोहन हड़बड़ा कर उठा। उसका खेत पानी से लबालब भरा हुआ था। माधो काका ने जल्दी से पानी दूसरी ओर काटा। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। लगभग आधी फसल खराब हो चुकी थी।

सोहन: काका अब कुछ नहीं हो सकता क्या?

माधो काका: नहीं बेटा तैयार फसल का ध्यान बच्चे की तरह रखना पड़ता है। समय से पानी देना, खाद देना, जानवरों से बचाना। इसीलिये हम दिन रात खेत पर रहते हैं।

अब तो भगवान ही मालिक है।

सोहन पेड़ के नीचे बैठा रोता रहा।

दोपहर को सुमित्रा खाना लेकर आई। उसे सब पता लगा तो उसने भी सोहन को बहुत डाटा।

शाम को सोहन घर नहीं आया न ही उसने खाना खाया उसकी भूख प्यास, नींद सब उड़ चुकी थी।

अगले दिन जब कबीरदास घर वापस आये तो उन्होंने सोहन के बारे में पूछा –

सुमित्रा ने सारी बात बता दी।

कबीरदास सब छोड़ कर दौड़ते हुए खेत पर पहुंचे उन्होंने देखा मोहन पेड़ के नीचे बैठा रो रहा था। आधी फसल खराब हो चुकी थी।

सोहन: पिताजी मुझे माफ कर दीजिये मेरे आलस ने इतना बड़ा नुकसान कर दिया। आप चाहें तो मुझे पीट लीजिये।

कबीरदास: नहीं तुझे मारने से फसल ठीक नहीं होगी। वादा कर आज के बाद कभी आलस नहीं करेगा। चल अब घर चल वहीं बात करेंगे।

दोंनो घर आ जाते हैं।

सोहन की आंखों से अब भी आंसू बह रहे थे।

सुमित्रा ने उसे खाना दिया। लेकिन उसने नहीं खाया और वह अपने कमरे में जाकर रोने लगा।

सुमित्रा: जी अब क्या होगा आधी फसल तो बर्बाद हो गई।

कबीरदास: सुमित्रा कोई घाटे का सौदा नहीं है। आधी फसल देकर अगर बेटा सुधर गया तो यही काफी है।

कबीरदास ने सोहन को बुलाया –

कबीरदास: बेटा अब तो नुकसान होना था हो गया। अब हमें कल से आधे खेत की फसल उखाड़ कर दुबारा बोनी होगी।

सोहन: पिताजी आप बाकी आधे खेत में खाद यूरिया लगा कर उसे काटने का इंतजाम कीजिये। मैं इस पर अकेले काम करना चाहता हूं।

अगले दिन सुबह चार बजे सोहन अपने पिता के साथ खेत पर पहुंच गया। और पिता के बाताये अनुसार खेत पर काम करने लगा।

चार महीने कठिन परिश्रम करने के बाद। नई फसल कुछ बढ़ती हुई दिखाई देने लगी।

सोहन अब एक कर्मठ, मेहनती इंसान बन चुका था।

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