धरती माँ का संदेश
धरती माँ का संदेश, गूँजे हर कोने में, संरक्षण की बातें, उसकी गोदी के सपने में। हरियाली ओढ़े, नीले आकाश तले, कहती है धरती, “सजाओ मुझे, न बर्बाद करे।” पेड़ों की हरी छाँव, नदियों की कल-कल, सिखाती है धरती, जीवन का हर पल। “बचाओ मुझे,” कहती है बार-बार, प्रकृति के संरक्षण में, है हमारा उद्धार। […]
धरती माँ का संदेश, गूँजे हर कोने में,
संरक्षण की बातें, उसकी गोदी के सपने में।
हरियाली ओढ़े, नीले आकाश तले,
कहती है धरती, “सजाओ मुझे, न बर्बाद करे।”
पेड़ों की हरी छाँव, नदियों की कल-कल,
सिखाती है धरती, जीवन का हर पल।
“बचाओ मुझे,” कहती है बार-बार,
प्रकृति के संरक्षण में, है हमारा उद्धार।
सूरज की रोशनी, चाँदनी रात की बात,
धरती का हर रंग, जीवन का है साथ।
धरती माँ कहती, “जीओ और जीने दो,”
हमारी धरती, हमारी आशा की धारा बहती रहो।
यह कविता “धरती माँ का संदेश” हमें प्रकृति के प्रति शिक्षाप्रद और संवेदनशील होने का महत्वपूर्ण संदेश देती है। इसमें धरती माँ की ओर से एक आह्वान है कि हम उसकी देखभाल करें और उसे संरक्षित रखें। कविता के माध्यम से यह समझाया गया है कि हमारी प्रकृति हमें कितना कुछ देती है और बदले में हमें भी उसका संरक्षण करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए। यह कविता हमें पर्यावरण के प्रति जागरूक और सचेत रहने की प्रेरणा देती है, ताकि हमारी धरती सुरक्षित और हरी-भरी बनी रहे।
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