शिवमंगल सिंह ‘सुमन’: कविता, चेतना और समर्पण का सजीव प्रतीक

शिवमंगल सिंह सुमन: हिंदी कविता के युगद्रष्टा, जिनकी रचनाएं आज भी जीवन, संघर्ष और चेतना की आवाज़ हैं।
हिंदी साहित्य का इतिहास कई अनमोल रत्नों से भरा पड़ा है, लेकिन कुछ नाम ऐसे होते हैं जो केवल साहित्य के लिए नहीं, बल्कि समाज की चेतना के लिए भी एक मशाल बनकर सामने आते हैं। डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ऐसे ही एक युगपुरुष थे, जिनकी कविताएं न सिर्फ भावनाओं की अभिव्यक्ति थीं, बल्कि समय की नब्ज को थामे समाज के हर पहलू पर निर्भीक टिप्पणी भी करती थीं।
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उनके निधन के बाद एक मार्मिक टिप्पणी की थी:
“डॉ. शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ केवल हिंदी कविता के क्षेत्र में एक शक्तिशाली चिह्न ही नहीं थे, बल्कि वह अपने समय की सामूहिक चेतना के संरक्षक भी थे।”
यह एक साधारण व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक युगद्रष्टा की पहचान है।
जीवन परिचय: झगरपुर से उज्जैन तक की यात्रा
5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के झगरपुर गाँव में जन्मे शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की प्रारंभिक शिक्षा रीवा और ग्वालियर में हुई। प्रारंभ से ही उनमें साहित्य और संस्कृति के प्रति विशेष रुझान था। उन्होंने हिंदी साहित्य में एम.ए. और पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की और 1950 में उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से डी.लिट. की उपाधि मिली। शिक्षा और साहित्य में उनका समर्पण देखकर कहना गलत नहीं होगा कि वह एक कवि के साथ-साथ एक चिंतक और शिक्षाविद भी थे।
शैक्षणिक और प्रशासनिक योगदान
डॉ. सुमन केवल काव्य में ही नहीं, बल्कि शिक्षा और प्रशासन में भी अपनी प्रभावी उपस्थिति के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कई प्रतिष्ठित पदों पर कार्य किया:
- विक्रम विश्वविद्यालय (उज्जैन) के कुलपति (1968–78)
- भारतीय विश्वविद्यालय संघ, नई दिल्ली के अध्यक्ष (1977–78)
- भारतीय दूतावास, काठमांडू (नेपाल) में प्रेस एवं सांस्कृतिक अटैशे (1956–61)
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के उपाध्यक्ष
- कालिदास अकादमी, उज्जैन के कार्यकारी अध्यक्ष
उनकी यह बहुआयामी भूमिका दर्शाती है कि वे केवल शब्दों के शिल्पकार नहीं थे, बल्कि विचारों और संस्थाओं को आकार देने वाले प्रभावशाली नेतृत्वकर्ता भी थे।
काव्य सृजन: भावनाओं और यथार्थ का संतुलन
डॉ. सुमन की कविताओं में जीवन की गहराई, युग का दर्द, और समाज का यथार्थ – तीनों का अद्भुत समन्वय मिलता है। वे उन कवियों में से थे जो ‘कविता को केवल सौंदर्य नहीं, चेतना का उपकरण’ मानते थे।
प्रमुख कविता संग्रह:
- हिल्लोल (1939)
- जीवन के गान (1942)
- युग का मोल (1945)
- प्रलय सृजन (1950)
- विश्वास बढ़ता ही गया (1948)
- विध्य हिमालय (1960)
- मिट्टी की बारात (1972) — साहित्य अकादमी से सम्मानित
- वाणी की व्यथा (1980)
- कटे अँगूठों की वंदनवारें (1991)
अमर पंक्तियाँ और कविताएं:
उनकी यह पंक्ति आज भी हर मन को झकझोर देती है:
“हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजरबद्ध न गा पाएँगे।“
यह सिर्फ एक कविता नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की पुकार है, मनुष्यता की चाह है। उनकी रचना “तूफानों की ओर घुमा दो नाविक!” आज भी संघर्ष के समय लोगों को प्रेरणा देती है।
कुछ और प्रमुख कविताएं:
- चलना हमारा काम है…
- मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार…
- मृत्तिका दीप
- जल रहे हैं दीप, जलती है जवानी… (त्रयी भाग)
- सहमते स्वर श्रृंखला
- अंगारे और धुआँ
- मेरा देश जल रहा, कोई नहीं बुझाने वाला…
इन कविताओं में जीवन के विविध आयामों को उन्होंने गहराई से छुआ – प्रेम, देशभक्ति, समाज, पीड़ा, और संघर्ष।
गद्य और नाटक में योगदान
महत्वपूर्ण गद्य रचनाएँ:
- महादेवी की काव्य साधना
- गीति काव्य: उद्यम और विकास
प्रसिद्ध नाटक:
- प्रकृति पुरुष कालिदास
डॉ. सुमन का गद्य लेखन भी उतना ही प्रभावशाली था जितना उनका पद्य। उन्होंने न केवल आलोचना और विश्लेषण किया बल्कि समकालीन साहित्य की परख और दिशा तय करने में भी योगदान दिया।
सम्मान और पुरस्कार
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ को साहित्य और शिक्षा में उनके अद्वितीय योगदान के लिए अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया:
- पद्मश्री – 1974
- पद्मभूषण – 1999
- साहित्य अकादमी पुरस्कार – 1974 (मिट्टी की बारात के लिए)
- देव पुरस्कार – 1958
- सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार – 1974
- भारत भारती पुरस्कार – 1993
- शिखर सम्मान – मध्य प्रदेश सरकार, 1993
- डी.लिट. – भागलपुर और जबलपुर विश्वविद्यालय से
इन सम्मानों से स्पष्ट है कि उनकी काव्य और चिंतनशील प्रतिभा को व्यापक स्तर पर पहचाना गया।
मानवता से जुड़ी कविताएं: एक आम पाठक के दिल की आवाज
सुमन की कविताएं केवल पढ़ी नहीं जातीं, बल्कि महसूस की जाती हैं। उनका लेखन समाज के हर वर्ग के लिए था – एक किसान के दर्द से लेकर एक सैनिक की हिम्मत तक। उनकी कविताओं में नायिका कोई परी या कल्पना की स्त्री नहीं थी, बल्कि रोज़ की जिंदगी जीने वाली वह स्त्री थी, जो चुपचाप अपने हिस्से का संघर्ष सहती थी।
अंतिम समय और विरासत
डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का निधन 27 नवंबर 2002 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ। लेकिन उनके शब्द, उनके विचार, उनकी चेतना आज भी हिंदी जगत में जीवित है। वे चले गए, लेकिन उनकी कविताएं अब भी समाज की आत्मा को झकझोरती हैं, राह दिखाती हैं।
उपसंहार: मिट्टी से प्रेम, शब्दों से युग निर्माण
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जीवन हमें यह सिखाता है कि कवि केवल सौंदर्य का उपासक नहीं होता, वह युग का द्रष्टा होता है, समाज का मार्गदर्शक होता है। उनकी रचनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके लिखे जाने के समय थीं।
“चलना हमारा काम है, हम चलेंगे।“
यह केवल पंक्ति नहीं, जीवन का संदेश है – निरंतरता, संघर्ष, और आशा का।
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