सर्वमंगला: एक अद्भुत कथा
यह कहानी सर्वमंगला की है, जो एक ब्राह्मण की प्यारी बेटी थी। जानिए कैसे उनकी भक्ति ने माँ दुर्गा को उनके घर आने पर विवश कर दिया।
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। उसकी एकमात्र संतान थी, उसकी बेटी सर्वमंगला। वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही पवित्र और सरल, मानो चाँद का कोई टुकड़ा हो।
एक दिन, उस गाँव में एक अमीर व्यापारी आया। जब उसने सर्वमंगला को देखा, तो उसकी सुंदरता से बहुत प्रभावित हुआ और उसी क्षण उससे विवाह का प्रस्ताव लेकर उसके पिता के पास पहुँचा। व्यापारी ने ब्राह्मण से कहा, “महाशय! आपकी बेटी से विवाह करने का मेरा सौभाग्य हो। मैं उसे रानी की तरह रखूँगा।“
ब्राह्मण ने विनम्रतापूर्वक कहा, “सर, सर्वमंगला मेरी इकलौती बेटी है। अगर वह चली जाएगी, तो मेरे साथ कौन रहेगा? मैं बहुत अकेला हो जाऊंगा।”
व्यापारी ने उत्तर दिया, “एक दिन तो आपको अपनी बेटी का हाथ किसी को सौंपना ही है, तो क्यों न आज? मैं वादा करता हूँ कि वह हमेशा खुश रहेगी और अक्सर आपसे मिलने आती रहेगी।”
व्यापारी की बातों से ब्राह्मण सहमत हो गया, और सर्वमंगला का विवाह व्यापारी से हो गया। शादी के बाद सर्वमंगला अपने पति के गाँव चली गई, जहाँ वे दोनों खुशी-खुशी रहने लगे।
कुछ समय बाद, दुर्गा पूजा का दिन आया। ब्राह्मण को अपनी बेटी की याद आई, और उसने सोचा कि वह सर्वमंगला को पूजा के लिए अपने घर बुलाए। इसलिए वह व्यापारी के घर गया और उससे अपनी बेटी को साथ ले जाने की विनती की। लेकिन व्यापारी ने मना कर दिया। उसने कहा, “आज हमारे घर पर मेहमान आ रहे हैं और वे सर्वमंगला से मिलने के इच्छुक हैं। इसलिए वह यहाँ रहना ज़रूरी है।”
ब्राह्मण ने बहुत अनुरोध किया, लेकिन व्यापारी अड़ा रहा। निराश होकर ब्राह्मण गाँव के बाहर की ओर लौट रहा था, तभी उसे अपनी बेटी की आवाज़ सुनाई दी। जब उसने मुड़कर देखा, तो सर्वमंगला दौड़ती हुई उसकी ओर आ रही थी।
ब्राह्मण ने चकित होकर पूछा, “सर्वमंगला, तुम यहाँ कैसे आईं?”
सर्वमंगला ने मुस्कुराते हुए कहा, “पिताजी, मेरे पति को आपकी चिंता हुई, इसलिए उन्होंने मुझे आपके साथ आने की अनुमति दे दी।”
ब्राह्मण की खुशी का ठिकाना न रहा। वह सर्वमंगला को अपने साथ घर ले आया, और दोनों ने मिलकर पूजा की तैयारियाँ शुरू कीं। जब पूजा का समय आया, ब्राह्मण ने सबसे पहले माँ दुर्गा को भोजन अर्पित किया। लेकिन जब वह भोजन कक्ष से लौटा, तो उसने देखा कि सर्वमंगला वह भोजन खा रही थी।
ब्राह्मण ने उसे डांटा, फिर से भोजन बनाया और माँ दुर्गा को अर्पित किया। लेकिन सर्वमंगला ने फिर से वही किया। ब्राह्मण ने गुस्से से पूछा, “तुम ऐसा बार-बार क्यों कर रही हो?”
सर्वमंगला कुछ नहीं बोली, बस जोर-जोर से हँसने लगी। उसकी हँसी से ब्राह्मण घबरा गया।
अचानक, सर्वमंगला का रूप बदल गया। उसके स्थान पर माँ दुर्गा प्रकट हो गईं। ब्राह्मण के लिए यह नज़ारा अविश्वसनीय था। उसने हाथ जोड़कर कहा, “हे माँ! मुझे क्षमा करें, मैंने आपको पहचाना नहीं। मेरी बेटी कहाँ है?”
माँ दुर्गा ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “पुत्र, मैं जानती थी कि तुम्हारे साथ क्या हो रहा है, और तुम्हारी भक्ति से प्रभावित होकर मैं स्वयं तुम्हारे पास आई हूँ। मुझे देखकर प्रसन्न होओ। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”
यह कहते ही माँ दुर्गा अदृश्य हो गईं। लेकिन ब्राह्मण का हृदय माँ के आशीर्वाद से भर गया। उस दिन की पूजा उसके लिए अविस्मरणीय थी, क्योंकि अब वह कभी अकेला नहीं था—माँ दुर्गा उसके साथ थीं, आज भी और हमेशा रहेंगी।
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