वह बालक जिसने मृत्यु को हराया

Markandeya

मार्कण्‍डेय की यह कहानी दिखाती है कि सच्ची भक्ति और दृढ़ संकल्प से असंभव को भी संभव किया जा सकता है।

लेखिका: दीपा अग्रवाल

मृकंडु नाम के एक ऋषि और उनकी पत्नी मरुद्वती जंगल में अपने आश्रम में रहते थे। वे धार्मिक और ईश्वर-भक्त थे। हालांकि उनके पास जो कुछ था उसमें वे संतुष्ट थे, लेकिन एक चीज़ की कमी उनके जीवन को अधूरा बनाती थी – उनका कोई संतान नहीं था।

Fire-Boltt Phoenix Ultra Luxury Stainless Steel, Bluetooth Calling Smart Watch
Fire-Boltt Phoenix Ultra Luxury Stainless Steel, Bluetooth Calling Smart Watch
Get This
Fire-Boltt Ninja Call Pro Max Smart Watch
Fire-Boltt Ninja Call Pro Max Smart Watch
Get This
Complete Science Kit, Learning & Educational Toy for Kids 8 Year+
Complete Science Kit, Learning & Educational Toy for Kids 8 Year+
Get This
Fire-Boltt Ninja Call Pro Plus Smart Watch
Fire-Boltt Ninja Call Pro Plus Smart Watch
Get This
Noise Pulse 2 Pro [New Launch]
Noise Pulse 2 Pro [New Launch]
Get This

कई वर्षों तक इंतजार करने के बाद, उन्होंने निर्णय लिया कि वे सभी पवित्र स्थलों की यात्रा करेंगे और प्रार्थना करेंगे ताकि उन्हें संतान का आशीर्वाद मिल सके। वे विभिन्न तीर्थ स्थानों पर गए और अंत में केदारनाथ पहुंचे। परंतु उनकी गहन प्रार्थनाओं के बावजूद उन्हें संतान नहीं मिली। निराश होकर, वे वापस जंगल लौट आए और अपना जीवन प्रार्थना और उपवास में बिताने का निश्चय किया।

जंगल में छोटे-छोटे जानवरों को उछल-कूद करते देख मरुद्वती के दिल में अपनी संतान के लिए गहरी लालसा होती। एक दिन, जब वह नदी से पानी लेने गईं, तो उन्होंने एक महिला से अपनी पीड़ा साझा की। उस महिला ने उन्हें शिव की पूजा करने की सलाह दी। मृकंडु और मरुद्वती ने शिव की आराधना शुरू कर दी। उनकी सच्ची प्रार्थनाओं से शिव प्रसन्न हुए और एक दिन स्वयं उनके सामने प्रकट हुए।

शिव को देखकर दोनों उनके चरणों में गिर पड़े। लेकिन भगवान शिव ने जो कहा, उससे वे दुविधा में पड़ गए। उन्होंने कहा कि वे उन्हें संतान का वरदान देंगे, लेकिन उन्हें चुनना होगा। क्या वे एक धार्मिक और धर्मप्रिय पुत्र चाहेंगे जो अल्पायु हो, या एक ऐसा पुत्र जो दीर्घायु हो लेकिन धर्म से दूर हो? बिना किसी झिझक, दोनों ने पहले विकल्प को चुना।

आखिरकार, उनके घर एक पुत्र ने जन्म लिया। उसके जन्म के समय आकाश से एक आवाज़ आई, “यह बालक केवल बारह वर्ष तक ही जीवित रहेगा।” यह सुनकर मृकंडु और मरुद्वती दुखी हो गए, लेकिन उन्होंने इसे ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार कर लिया।

उन्होंने अपने बेटे का नाम मार्कण्‍डेय रखा। जब वह पांच वर्ष का हुआ, तो उसके माता-पिता ने उसे गुरुकुल भेज दिया। मार्कण्‍डेय एक आदर्श विद्यार्थी निकला। वह पढ़ाई और अपने गुरु की सेवा में लगा रहता। उसकी भक्ति और सरल स्वभाव ने सभी को प्रभावित किया।

ग्यारह वर्ष की आयु तक, उसने हर प्रकार का ज्ञान अर्जित कर लिया और गुरु ने उसे आशीर्वाद देकर घर भेज दिया। उसके माता-पिता उसके लौटने से बेहद खुश हुए, लेकिन उसके बारहवें जन्मदिन के पास आने का ख्याल उन्हें व्यथित कर देता।

मार्कण्‍डेय ने महसूस किया कि उसके माता-पिता हमेशा चिंतित रहते हैं। एक दिन उसने अपने पिता से पूछा, “पिताश्री, आप और माता जी इतने उदास क्यों रहते हैं? कृपया मुझे कारण बताइए। शायद मैं आपकी मदद कर सकूं।”

Fire-Boltt Phoenix Ultra Luxury Stainless Steel, Bluetooth Calling Smart Watch
Fire-Boltt Phoenix Ultra Luxury Stainless Steel, Bluetooth Calling Smart Watch
Get This
Fire-Boltt Ninja Call Pro Max Smart Watch
Fire-Boltt Ninja Call Pro Max Smart Watch
Get This
Complete Science Kit, Learning & Educational Toy for Kids 8 Year+
Complete Science Kit, Learning & Educational Toy for Kids 8 Year+
Get This
Fire-Boltt Ninja Call Pro Plus Smart Watch
Fire-Boltt Ninja Call Pro Plus Smart Watch
Get This
Noise Pulse 2 Pro [New Launch]
Noise Pulse 2 Pro [New Launch]
Get This

उसके पिता ने एक गहरी सांस लेकर कहा, “बेटा, तुम्हारे जन्म के समय यह तय हो चुका था कि तुम केवल बारह वर्ष तक जीवित रहोगे। यही कारण है कि हम हमेशा दुखी रहते हैं। तुम्हें अपना अधिकतर समय प्रार्थना में बिताना चाहिए।”

मार्कण्‍डेय ने उत्तर दिया, “पिताश्री, आप चिंता न करें। मैं अपनी प्रार्थनाओं से दीर्घायु प्राप्त करूंगा।” उसी समय नारद मुनि वहां आए। उन्होंने कहा, “बालक, भाग्य को बदलना कठिन है, लेकिन मानवी इच्छाशक्ति कभी-कभी चमत्कार कर सकती है। तुम गौतमी नदी के किनारे जाकर ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करो।”

मार्कण्‍डेय के माता-पिता भारी मन से उसे विदा कर नदी के तट पर भेजते हैं। वहां उसने रेत से शिवलिंग बनाया और पूजा शुरू कर दी। नारद मुनि ने यमराज को जाकर यह बात बताई कि बालक मृत्यु को हराने के लिए तप कर रहा है।

यमराज बोले, “यह व्यर्थ है। कोई भी मृत्यु से नहीं बच सकता।”

मार्कण्‍डेय की तपस्या गहन होती गई। ऋतुएं बदलीं, लेकिन वह अचल तप करता रहा। उसके तप से प्रभावित होकर सप्तर्षि वहां आए। उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और ब्रह्मा से उसकी आयु बढ़ाने की प्रार्थना की। लेकिन ब्रह्मा बोले, “इसे केवल शिव ही बचा सकते हैं।”

सप्तर्षियों ने मार्कण्‍डेय को महामृत्युंजय मंत्र सिखाया। बालक ने उस मंत्र का जाप शुरू कर दिया। उसके माता-पिता भी उसकी लंबी उम्र के लिए प्रार्थना कर रहे थे।

Fire-Boltt Phoenix Ultra Luxury Stainless Steel, Bluetooth Calling Smart Watch
Fire-Boltt Phoenix Ultra Luxury Stainless Steel, Bluetooth Calling Smart Watch
Get This
Fire-Boltt Ninja Call Pro Max Smart Watch
Fire-Boltt Ninja Call Pro Max Smart Watch
Get This
Complete Science Kit, Learning & Educational Toy for Kids 8 Year+
Complete Science Kit, Learning & Educational Toy for Kids 8 Year+
Get This
Fire-Boltt Ninja Call Pro Plus Smart Watch
Fire-Boltt Ninja Call Pro Plus Smart Watch
Get This
Noise Pulse 2 Pro [New Launch]
Noise Pulse 2 Pro [New Launch]
Get This

जब मार्कण्‍डेय के बारहवें जन्मदिन का दिन आया, यमराज ने अपने दूतों को भेजा, लेकिन वे बालक के तेज के कारण पास भी नहीं जा सके। अंततः यमराज स्वयं आए।

यमराज बोले, “बालक, तुम्हारा समय पूरा हो चुका है। चलो मेरे साथ।”

मार्कण्‍डेय शिवलिंग से लिपट गया और बोला, “भगवान शिव, मैं आपकी शरण में हूं।”

जैसे ही यमराज ने अपना फंदा फेंका, वह शिवलिंग पर भी पड़ गया। तभी शिव प्रकट हुए और यमराज को रोक दिया। शिव ने क्रोधित होकर यमराज पर प्रहार करने का इरादा किया, लेकिन अन्य देवताओं ने हस्तक्षेप कर यमराज की जान बचाई।

शिव ने मार्कण्‍डेय को अमरता का वरदान दिया। उसके माता-पिता यह देख अति प्रसन्न हुए। मार्कण्‍डेय ने अपनी पूरी जिंदगी दूसरों की भलाई और ज्ञान के प्रसार में लगा दी।

सीख: भक्ति और सच्ची प्रार्थना से असंभव को भी संभव किया जा सकता है।

#editors-choice #भारतीय पौराणिक कथाएं #हिंदू साहित्य

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *