इंसान बनाम किस्मत: अकबर-बीरबल का किस्सा

किस्मत पर भरोसा या अपने कर्म पर? पढ़िए अकबर और बीरबल की कहानी, जहां किस्मत ने सबको चौंका दिया!
शाही नाव यमुना की काली लहरों पर पक्षी की तरह तेजी से दौड़ रही थी। आसमान में तारे चमक रहे थे। बादशाह ने चप्पू रोक लिया और थोड़ा रुके। उनके चेहरे पर कुछ ही मिनटों के जोशपूर्ण चप्पू चलाने से लाली थी। उन्होंने नाविक को चप्पू सौंप दिया और वापस अपनी जगह पर बैठ गए।
“शाह आलम उतनी ही सहजता और बुद्धिमानी से नाव चला रहे हैं जितनी कि हिंदुस्तान की किस्मत,” अबुल फजल ने कहा।


“किस्मत क्या होती है?” अकबर ने ऊँची आवाज़ में सोचा। “क्या इंसान अपने मन की शक्ति और अपने हाथों के बल से अपनी किस्मत खुद बनाता है? किस्मत तो बस एक मिट्टी है, जिसे इंसान को खुद ढालना होता है।”
“मेरे सरदार, किस्मत को कम नहीं आंकना चाहिए,” बीरबल ने कहा। “किस्मत ही हमारे जीवन को आकार देती है, हम किस्मत को नहीं, बल्कि किस्मत हमें चलाती है। किस्मत हमसे कहीं ज्यादा ताकतवर है।”
“बीरबल!” अकबर ने विरोध किया, “तुमसे इतनी कमजोर और डरपोक राय की मुझे उम्मीद नहीं थी!”
“मैंने सच ही कहा, मेरे सरदार, भले ही वह कड़वा क्यों न लगे।”
अकबर के भारी भौंहें एक साथ आईं। उन्होंने अपनी बाईं उंगली से एक चमकदार हीरे और माणिक का अंगूठी निकाली और दरबारियों के सामने लहराई। फिर, बड़े ही सावधानी से उन्होंने अंगूठी को नदी की गहराई में फेंक दिया।
“बीरबल,” बादशाह ने कहा, “मुझे वह अंगूठी तीन दिनों में वापस चाहिए। तुम मानते हो कि किस्मत सब कुछ है। अगर तुम्हारी किस्मत अच्छी हुई, तो अंगूठी वापस मिल जाएगी। और अगर किस्मत खराब निकली, तो तीन दिनों में तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा। बताओ, क्या कहना है?”
“कुछ नहीं, महाराज,” बीरबल ने शांत स्वर में कहा। उन्होंने मुँह में कड़वाहट के साथ शाहबाज़ खान और मुल्ला दो पियाज़ा की विजयी मुस्कान देखी।


“अलविदा, बीरबल,” मुल्ला दो पियाज़ा ने धीमी आवाज़ में कहा। “मुझे लगता है कि तुम्हारे जीवन के दिन गिनती के हैं।”
बीरबल के दिल में भी हल्की सी चिंता थी। उनकी पत्नी, बच्चे और रिश्तेदार सब उन्हें ताने मारने लगे।
“तुम हर बार बादशाह की बात का विरोध क्यों करते हो?” उनकी पत्नी ने गुस्से में आँसू बहाते हुए कहा। “अब वे तुम्हारा सिर कटवा देंगे। फिर हमारा क्या होगा?”
“कौन जानता है कि किस्मत में क्या लिखा है?” बीरबल ने शांत होकर जवाब दिया। “धैर्य रखो और किस्मत पर भरोसा करो। मृत्यु का समय कोई नहीं बदल सकता।”
बीरबल ने तीन दिन के बीतने का इंतजार किया। अंगूठी को पाने का उनके पास कोई तरीका नहीं था। उन्होंने अपने मन में फांसी के लिए खुद को तैयार कर लिया।
तीसरे दिन दोपहर में, बादशाह ने बीरबल को बुलाया। अकबर अपना दोपहर का भोजन कर रहे थे। उनके सामने सोने, चाँदी, पत्थर और चीनी मिट्टी की प्लेटों में लगभग साठ तरह के पकवान सजे हुए थे।


बादशाह ने थोड़े-थोड़े व्यंजनों का स्वाद लिया। “बीरबल, मेरे दोस्त,” अकबर ने कहा, “किस्मत ने तुम्हारा साथ नहीं दिया। मेरी अंगूठी अब भी नदी में है। मुझे लगता है कि तुम्हारे मूर्ख सिर को जल्द ही जल्लाद की तलवार का सामना करना पड़ेगा। लेकिन अभी भी समय है। अगर तुम अपनी बात वापस ले लेते हो, तो मैं इस सब को भूल जाऊंगा।”
तभी एक रसोइया बादशाह के सामने करी मछली का एक थाल लेकर आया। बीरबल ने सिर हिलाया। अपनी ही आवाज़ सुनकर वे खुद भी हैरान रह गए। “मैं अपनी बात वापस नहीं ले सकता, आलमपनाह। मैं किस्मत में विश्वास करता हूँ। यदि मेरी मृत्यु का समय आ गया है, तो हम कुछ नहीं कर सकते।”
अकबर परेशान हो गए। “बीरबल, तुम एक बड़े मूर्ख हो!” उन्होंने मछली का एक टुकड़ा मुँह में डाला, और फिर अचानक थूक दिया। हक्का-बक्का रसोइया लगभग गिर ही गया।


“ये क्या! मछली में पत्थर भरे हुए हैं!” अकबर ने गुस्से में चिल्लाया। उन्होंने देखा कि वह पत्थर असल में उनका वही अंगूठी था जिसे उन्होंने नदी में फेंक दिया था।
“बीरबल!” बादशाह ने जोर से कहा। “देखो यहाँ! देखो! यह मेरी अंगूठी है! आखिरकार किस्मत ने तुम्हें बचा ही लिया! तुम सही थे, बीरबल। हमेशा की तरह, तुम सही थे!”
फिर अकबर ने अपने रसोइए को माफ कर दिया और बीरबल की ओर मुस्कुराए। “किस्मत महान है, मेरे दोस्त। चलो तुम्हारी किस्मत का आदर करते हैं!”
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