लकड़हारा और सुनहरी कुल्हाड़ी की कहानी
लकड़हारे की प्रेरक कहानी जो बताती है कि ईमानदारी और निस्वार्थता से कैसे जीवन में सफलता हासिल की जा सकती है। पढ़ें पूरी कहानी।
किसी गांव में एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह रोज जंगल में जाकर लकड़ियां काटता और उन्हें बेचकर अपना गुजारा करता। एक दिन वह नदी के किनारे लकड़ी काट रहा था, तभी अचानक उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई। वह घबराया और कुल्हाड़ी को ढूंढने लगा, लेकिन नदी गहरी थी और बहाव तेज। अपनी कुल्हाड़ी खो जाने से वह बहुत दुखी हुआ और नदी किनारे बैठकर रोने लगा।
नदी के देवता का प्रकट होना
लकड़हारे की सच्ची परेशानी देखकर नदी के देवता प्रकट हुए। उन्होंने लकड़हारे से पूछा, “तुम क्यों रो रहे हो?” लकड़हारे ने पूरी ईमानदारी से अपनी समस्या बताई। देवता उसकी मदद करने के लिए तैयार हो गए और नदी में उसकी कुल्हाड़ी ढूंढने चले गए।
सुनहरी और चांदी की कुल्हाड़ी
कुछ समय बाद देवता सुनहरी कुल्हाड़ी लेकर आए और लकड़हारे से पूछा, “क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?” लकड़हारे ने तुरंत मना कर दिया। इसके बाद देवता चांदी की कुल्हाड़ी लेकर आए, लेकिन लकड़हारे ने इसे भी अस्वीकार कर दिया। उसने कहा, “मुझे मेरी लोहे की कुल्हाड़ी चाहिए।” देवता उसकी ईमानदारी देखकर प्रभावित हुए।
असली कुल्हाड़ी का मिलना
अंत में देवता उसकी लोहे की कुल्हाड़ी लेकर आए, जिसे देखकर लकड़हारा खुशी से झूम उठा। उसने कहा, “यही मेरी कुल्हाड़ी है।” देवता उसकी ईमानदारी से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने उपहारस्वरूप उसे सोने और चांदी की कुल्हाड़ी भी दे दी। देवता ने कहा, “तुम्हारे मन में लालच नहीं है, इसलिए मैं तुम्हें यह आशीर्वाद देता हूं।”
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि:
- ईमानदारी और सच्चाई सबसे बड़ा धन है।
- लालच से बचना चाहिए, जितना हमारे पास है, उसमें खुश रहना चाहिए।
- भगवान उन्हीं का साथ देते हैं, जिनका मन साफ और निस्वार्थ होता है।
यह कहानी बच्चों और बड़ों को जीवन में ईमानदार और अच्छा इंसान बनने की प्रेरणा देती है।
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